Muharram: ऑनलाइन होंगे जलसे, खालिद रशीद फरंगी महली ने बताया ऐसे मनाये मुहर्रम
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक एक महीने का नाम है. जो इस्लाम का पहला महीना होता है. मुहर्रम का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद पवित्र होता है.
नई दिल्ली/अहमर हुसैन रिजवी: इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना और पैगम्बर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन (Imam Hussain) की शहादत का महीना मोहर्रम का चांद आज पूरे मुल्क में देखा जाएगा. मरकजी चांद कमेटी फिरंगी महल और शिया चांद कमेटी ने सोमवार देर शाम चांद के दीदार होने पर मुहर्रम की तारीख का ऐलान करेंगी. इमाम ईदगाह और वरिष्ठ मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने मोहर्रम पर मुसलमानों से प्रोटोकॉल का पालन करने कहा साथ हा भीड़ इकट्ठा न करने की अपील जारी की है.
चांद नज़र आया तो कल से मोहर्रम
हर साल मोहर्रम के चांद के दीदार होने के बाद से ईदगाह लखनऊ में इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया की ओर से इस्लामिक जलसों का बड़े पैमाने पर एहतिमाम किया जाता रहा है. इन जलसों में बड़ी तादाद में मुस्लिम तबके के लोग शिरकत करते हैं. मौलाना खालिद रशीद की सरपरस्ती में होने वाले इन जलसों में प्रदेश के कई उलमा भी हर साल शरीक होते हैं. लेकिन कोरोना महामारी और तीसरी लहर की दस्तक के चलते इस साल यह जलसे मुस्लिम धर्मगुरु खालिद रशीद फरंगी महली ने रद्द कर दिए हैं और इस बार ऑनलाइन ही जलसों को प्रसारित किया जाएगा.
ऑनलाइन होंके मुहर्रम के जलसे
मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने आवाम के नाम वीडियो संदेश जारी कर कहा कि अभी भी कोविड प्रोटोकॉल लागू है और संक्रमण दोबारा से बढ़ रहा है. इसलिए प्रोटोकॉल का पालन हम सबको करना है और कहीं पर भी भीड़ जमा नहीं करनी है. मौलाना ने कहा कि तीसरी लहर के खतरें को देखते हुए किसी भी जगह भीड़ इकट्ठा न करें और अफवाहों पर ध्यान न दें. मौलाना ने बताया कि हर साल ईदगाह में होने वाले जलसों को इस वर्ष रद्द कर दिया गया है और ऑनलाइन उनका प्रसारण इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के पेज पर किया जाएगा.
क्या है मुहर्रम
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक एक महीने का नाम है. जो इस्लाम का पहला महीना होता है. मुहर्रम का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद पवित्र होता है. क्योंकि इस महीने पैगम्बर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन (Imam Hussain) की शहादत हुई थी. मुहर्रम की 10 तारीख को यौमे आशूरा (Ashura) कहा जाता है. इस दिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में शिया तबके के लोग मातम करते हैं और जुलूस भी निकालते हैं.