श्मशान घाट में आखिरी रसूमात के लिए आने वाले लोगों को पानी, लकड़ी समेत दूसरी ज़रूरतों के सामान मुहैया कराती आ रही हैं. जिसके बदले में वो किसी से भी एक भी रुपया नहीं लेतीं.
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गुवाहाटी: जहां आज कुछ लोग मज़हब के नाम पर एक दूसरे को मारने-मरने पर उतारू हो जाते हैं. वहीं हिंदुस्तान की असल विरासत यानी गंगा-जमनी तहज़ीब की हिफाज़त करने वाले भी अभी कुछ लोग ज़िंदा हैं. जो किसी भी शख्स को मज़हब या ज़ात के चश्मे से नहीं देखते. एक ऐसी ही मिसाल पेश कर रही हैं असम की शाहानूर. 55 साल की शाहानूर करीब 35 सालों से एक श्मशान घाट की रखवाली कर रही हैं.
बताया जा रहा है कि जिस जगह पर श्मशान घाट है वहां आसपास में एक भी हिंदू परिवार नहीं है और श्मशान घाट की कमेटी के लोग भी आसपास नहीं रहते. जिसके चलते शाहानूर पिछले 35 सालों से श्मशान घाट की साफ-सफाई करना, पेड़ पौधे लगाना और उनकी हिफाज़त करना के साथ-साथ श्मशान घाट में आखिरी रसूमात के लिए आने वाले लोगों को पानी, लकड़ी समेत दूसरी ज़रूरतों के सामान मुहैया कराती आ रही हैं. जिसके बदले में वो किसी से भी एक भी रुपया नहीं लेतीं.
शाहानूर एक मुस्लिम खातून हैं और रोज़ा-नमाज़ रखने के साथ-साथ श्मशान घाट में लोगों को खिदमत करके अपने आप पर फख्र महसूस करती हैं. शाहानूर पिछले 35 सालों से इसे इंसानी खिदमत के तौर पर ये काम करती आ रही हैं. आज के समाज को एक धागे में बांधने की शाहानूर की यह कोशिश काबिले तारीफ है.
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