आंखों पर कपड़ा बांधकर जंगल में घुमाते थे नक्सली, जानिए CRPF जवान की आजादी की पूरी कहानी
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आंखों पर कपड़ा बांधकर जंगल में घुमाते थे नक्सली, जानिए CRPF जवान की आजादी की पूरी कहानी

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा और बीजापुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में पिछले हफ्ते शनिवार को मुठभेड़ के बाद नक्सलियों द्वारा अगवा किए गए ‘कोबरा’ कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास (Rakeshwar Singh Manhas) को सैकड़ों ग्रामीणों के सामने नक्सलियों द्वारा सुरक्षित रिहा कर दिया गया. सूत्रों के म

फाइल फोटो

बीजापुर: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा और बीजापुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में पिछले हफ्ते शनिवार को मुठभेड़ के बाद नक्सलियों द्वारा अगवा किए गए ‘कोबरा’ कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास (Rakeshwar Singh Manhas) को सैकड़ों ग्रामीणों के सामने नक्सलियों द्वारा सुरक्षित रिहा कर दिया गया.

सूत्रों के मुताबिक नक्सलियों ने जवान को नुकसान नहीं पहुंचाया है. हालांकि, अपहरण के बाद वे जवान की आंख पर पट्टी बांधकर उसे जंगल में एक स्थान से दूसरे ले जाते रहे.

मन्हास की रिहाई के कुछ समय बाद बृहस्पतिवार की शाम सोशल मीडिया में कई वीडियो वायरल हो गए. वीडियो में देखा जा सकता है कि मन्हास को सैकड़ों आदिवासियों के सामने खड़ा किया गया है और उसकी दोनों बांह रस्सी से बंधी हुई हैं. इन रस्सियों को मुंह में कपड़ा लपेटे हथियारबंद नक्सली खोलते हैं और जवान को मध्यस्थों और स्थानीय पत्रकारों को सौंप दिया जाता है. बाद में मध्यस्थ और पत्रकार जवान को सुरक्षा बलों को सौंप देते हैं.

जवान को रिहा कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मध्यस्थ धर्मपाल सैनी बताते हैं कि नक्सलियों ने जवान को रिहा करते समय कहा कि उनकी कोई और अन्य मांगें नहीं है तथा वह जवान को उसके घर में देखना चाहते हैं. सैनी क्षेत्र के महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यकर्ता हैं और वह माता रुक्मणी आश्रम स्कूल के माध्यम से आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं. 91 वर्षीय सैनी पद्मश्री से सम्मानित हैं.उन्होंने बताया कि उन्हें जानकारी मिली है कि नक्सलियों ने अपहृत जवान को नुकसान नहीं पहुंचाया तथा उसे भोजन भी समय पर देते रहे.

बस्तर क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों ने बताया कि सैनी के साथ ही क्षेत्र के प्रमुख आदिवासी नेता तेलम बोरैया, मुरदंडा गांव की पूर्व सरपंच सुखमति हपका और बस्तर क्षेत्र में काम कर चुके सेवानिवृत्त शिक्षक रूद्र कर्रे मध्यस्थों में शामिल थे. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जवान के लापता होने से लेकर उसकी रिहाई तक बीजापुर के पत्रकारों की भूमिका महत्वपूर्ण थी.

छत्तीसगढ़ में स्थानीय समाचार चैनल के लिए काम करने वाले बीजापुर निवासी पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने बताया कि नक्सलियों ने चार अप्रैल को क्षेत्र के कुछ पत्रकारों को सूचना दी थी कि जवान राकेश्वर सिंह उनके कब्जे में है और वह सुरक्षित है. चंद्राकर ने कहा कि उस दौरान हालांकि उन्होंने यह जानकारी नहीं दी कि वह क्या करने वाले हैं, लेकिन तब से पत्रकार उनके संपर्क में थे.

चंद्राकर ने यह भी बताया कि बाद में माओवादियों ने छह अप्रैल को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि सरकार मध्यस्थों के नामों की घोषणा करे तब जवान को उन्हें सौंप दिया जाएगा. उन्होंने बताया कि आज वह और कुछ अन्य पत्रकार चार मध्यस्थों के साथ मोटरसाइकिल से मुठभेड़ स्थल जोनागुड़ा पहुंचे. वहां उन्हें करीब 15 किलोमीटर भीतर जंगल में ले जाया गया. उन्होंने बताया कि उस स्थान पर कई गांव के सैकड़ों आदिवासी ग्रामीण एकत्र थे और करीब 40 की तादाद में पामेड़ एरिया कमेटी के माओवादी मौजूद थे.

चंद्राकर ने बताया कि कुछ देर बाद हथियारबंद नक्सली जवान को लेकर वहां पहुंचे. इस दौरान जवान के हाथ रस्सी से बंधे हुए थे. उन्होंने कहा कि नक्सलियों ने ग्रामीणों के सामने जवान के बंधे हाथों को खोला और उसे मध्यस्थों को सौंप दिया. पत्रकार ने आगे बताया कि जवान राकेश्वर ने बातचीत के दौरान उन्हें जानकारी दी कि शनिवार को मुठभेड़ के दौरान गर्दन में चोट लगने से वह बेहोश हो गया और बाद में जब उसे होश आया तब वह नक्सलियों के कब्जे में था. जवान ने बताया कि नक्सली उसकी आंख पर पट्टी बांध देते थे और जंगल में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता था. 

बता दें कि इस महीने की तीन तारीख को राज्य के नक्सल प्रभावित सुकमा और बीजापुर के सरहदी क्षेत्र के जोनागुड़ा और टेकलगुड़ा गांव के करीब नक्सली हमले में 22 जवानों की मृत्यु के बाद से लापता सीआरपीएफ की 210 कोबरा बटालियन के कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास की बृहस्पतिवार की शाम रिहाई हो गई. मन्हास की सुरक्षित रिहाई से राज्य सरकार और सुरक्षा बल ने राहत की सांस ली है.

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