बोरवेल में अब न गिरे कोई दूसरा राहुल, इसलिए सुप्रीम कोर्ट करेगी मामले की सुनवाई
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बोरवेल में अब न गिरे कोई दूसरा राहुल, इसलिए सुप्रीम कोर्ट करेगी मामले की सुनवाई

12 साल पहले उच्चतम न्यायालय ने बोरवेल को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन इसका पालन नहीं हो पा रहा है और आए दिन बोरवेल में बच्चों के गिरने की घटनाएं सामने आ रही है. कोर्ट इस मामले पर अब दोबारा सुनवाई करेगी. 

छत्तीसगढ़ में 80 फीट गहरे बोरवेल से जिंदा बचाया गया राहुल

नई दिल्लीः छत्तीसगढ़ के जंजगीर चंपा जिले में 80 फीट गहरे बोरवेल में गिरे 11 वर्षीय लड़के राहुल साहू को सकुशल बोरवेल से निकाल लिया गया है. लगभग 104 घंटे तक चले अभियान के बाद मंगलवार रात उसे सुरक्षित बचा लिया गया है.  हालांकि पंजाब के होशियारपुर में 300 फुट गहरे बोरवेल में गिरा छह साल का रितिक भाग्यशाली नहीं रहा और सात घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद भी उसे जिंदा नहीं बचाया जा सका था. पिछले एक सालों में पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बोरवेल में बच्चों के गिरने की कई घटनाएं हुई, जिनमें बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी. हालांकि बड़ा सवाल यह है कि ऐसी घटनाओं को कैसे रोका जाए ?

उच्चतम न्यायालय ने खाली पड़े बोरवेल और ट्यूबवेल में छोटे बच्चों के गिरने की घटनाओं से बचने के लिए एक दशक से भी पहले दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन तब से अब तक स्थिति में बहुत बदलाव नहीं दिख रहा है. अब अदालत इस मामले पर सुनवाई करेगी.  

बोरवेल को लेकर क्या था सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस ? 
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन की सदारत वाली एक बेंच ने देश में इस तरह की दुर्घटनाओं से संबंधित एक पत्र याचिका पर 13 फरवरी, 2009 को स्वतः संज्ञान लिया था.  

उच्चतम न्यायालय ने 11 फरवरी 2010 को इस सिलसिले में जारी दिशा-निर्देश में वेल के निर्माण के वक्त आसपास कंटीले तार लगाने और वेल को सही तरीके से ढंकने समेत कई निर्देश दिए थे. 

न्यायालय ने अपने हुक्म में कहा था, ’’ बोरवेल और ट्यूबवेल या छोड़े गए वेल में बच्चों के गिरने और फंसने से संबंधित मामलों पर कोर्ट ने खुद ही पहल करके इस तरह की घटनाओं को रोकने को लेकर तत्काल कदम उठाने के लिए विभिन्न राज्यों को नोटिस जारी किया है.

शीर्ष अदालत ने अफसरों से अपने फैसले का व्यापक प्रचार करने को भी कहा था. सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को इससे अवगत कराने की जिम्मदारी थी. 

शीर्ष अदालत ने कहा था कि भूमि या परिसर के मालिक, बोरवेल या ट्यूबवेल बनाने के लिए कोई भी कदम उठाने से कम से कम 15 दिन पहले क्षेत्र में संबंधित अधिकारियों जैसे जिलाधिकारी, सरपंच, भूजल विभाग, सार्वजनिक स्वास्थ्य या नगर निगम के संबंधित अधिकारी को इस बारे में खबर करेंगे. 

अदालत ने निर्देश दिया था कि खुदाई करने वाली सभी सरकारी, अर्ध-सरकारी या निजी एजेंसियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होना चाहिए.

अदालत ने कहा था, ’’कुएं के पास निर्माण के वक्त वहां एक सूचना पट्टी लगानी होगी, जिस पर वेल के निर्माण या पुनर्वास के वक्त खुदाई करने वाली एजेंसी का पूरा पता और उपयोगकर्ता एजेंसी या मालिक का पूरा पता लिखा होना चाहिए.

शीर्ष अदालत मामले पर फिर करेगी सुनवाई 
इसके अलावा भी अदालत ने इस संबंध में कई दिशा-निर्देश जारी किये थे, लेकिन उन पर आज तक पूरी तरह अमल नहीं हो पाया. खुले बोरवेल और ट्यूबवेल में बच्चों के गिरने के मामलों में वृद्धि जारी रहने के चलते शीर्ष अदालत ने तीन फरवरी, 2020 को अधिवक्ता जी. एस. मणि द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की, जिन्होंने इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने में विफल रहने के लिए अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. शीर्ष अदालत ने 2010 के दिशा-निर्देशों पर अमल को लेकर केंद्र सरकार और सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश सरकारों से जवाब मांगा है. इस याचिका को 13 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. 

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