प्रियंका गांधी वाड्रा का खत: कुर्बानी और खिदमत के लिए 'अजय' है लल्लू का जज़्बा
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प्रियंका गांधी वाड्रा का खत: कुर्बानी और खिदमत के लिए 'अजय' है लल्लू का जज़्बा

अजय कुमार लल्लू मशरिकी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के सेवरही गांव में पैदा हुए, जहां बौद्ध धर्म के अनगिनत चिन्ह एक तारीख समेटे हुए हैं.

फाइल फोटो
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कांग्रेस जनरल सैक्रेटी प्रियंका गांधी ने अवाम के नाम एक खत जारी किया, उत्तर प्रदेश कांग्रेस सद्र अजय कुमार लल्लू के इंसानियत और अवाम के तईं उनके प्यार ज़ाहिर करते हुए खत में लिखा- मैं उन्नाव रेप केस के मुतास्सिर परिवार से मिलना चाहती थी, ठंड और कुहासे से भरी एक सुबह हम उन्नाव के लिए निकले, कार के अंदर माहौल काफी गमगीन था, जिस परिवार से हम मिलने जा रहे थे उसे फसाद ने उजाड़ दिया था. इंसाफ के लिए उनकी जिद्दोदहद और दर्द को हमने हकीकत में महसूस किया था लेकिन बेइंसाफ देखकर चुप रहना अजय लल्लू की फितरत नहीं है, कहने लगे,"दीदी, पूरे सूबे में आंदोलन खड़ा करना होगा", उन्होंने दरख्वास्त की, "संघर्ष, संपर्क, और संवाद" के बगैर कुछ भी कर लीजिये, सियासत में कामयाब नहीं हो सकते."

कुछ घंटों में हमारा पड़ाव आ गया, झोंपड़ी के बाहर भीड़ थी, कैमरे और माइक के साथ लोग झोपड़ी के पीछे एक चारपाई पर गिरे पड़े थे, चारपाई पर लड़की की भाभी और नौ साल की भतीजी बैठे थे, उम्र से ज्यादा बूढ़े हो चुके उसके वालिद बगल में खड़े थे, बेलगाम भीड़ को देखते हुए मैंने गुज़ारिश की कि हम उनकी कोठरी के अंदर चलें और उनकी बात सुनें, उनकी आपबीती सुनने के बाद अजा कुमार लल्लू फौरन उनके सामने घुटनों पर बैठ गए और मुतास्सिरी लड़की के रोते हुए वालिद का हाथ अपने हाथ में ले लिया, लल्लू की आँखों से आँसू झलक आए और कहा, "हम हैं न आपके साथ बाबा, हौसला रखो". 

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जब हम कोठरी से निकले तो अजय लल्लू हमारे साथ बाहर नहीं आए, बहुत सारे लोगों के बरअक्स तवज्जो का मरकज़ का मरकज़ बनने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी, वह उस परिवार के साथ कोठरी में तसल्ली देते बैठे रहे. जैसे ही हमारा काफिला लखनऊ में दाखिल होने को हुआ, लल्लू के कहने लगे कि उन्हें असेंबली के पास छोड़ दिया जाए, जहां कुछ कारकुन वारदात की मुखालिफत करने के लिए इकट्ठा थे, थोड़ी देर बाद हमें इत्तेला मिली कि वो गिरफ़्तार हो गए हैं. मैं जहाँ दिलचस्प थी वहां देर शाम जब वह रिहा होकर लौटे, मैंने थोड़ी खिंचाई करते हुए पूछा 'अब मन शांत हुआ अजय भैया? पुलिस से राब्ता कर आए, हँसते हुए कहा "दीदी सड़क पर तो उतरना ही होगा".

अजय कुमार लल्लू मशरिकी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के सेवरही गांव में पैदा हुए, जहां बौद्ध धर्म के अनगिनत चिन्ह एक तारीख समेटे हुए हैं. अजय लल्लू जब जमात 6 के तालिबे इल्म थे जब उन्होंने सड़क पर ठेला लगाया, दीवाली में पटाके बेचे, बुआई के मौसम में खाद और बाकी के दिनों में नमक, कॉलेज के वक्त लल्लू का साबका छात्र राजनीति से पड़ा। वे स्टूडेंट यूनियन सद्र भी चुने गए, खिदमत और जोशो खरोश से भरे इस नौजवान को एक दिन मेनस्ट्रीम की सियासत में आना ही था. मगर आज़ाद उम्मीदवारी के तौर पर अपना पहला चुनाव हारने के बाद इक्तेसादी मुश्किलों से जूझते हुए लल्लू के सामने दिल्ली जाकर कमाने के अलावा कोई मुतबादल न बचा. उन्नाव जाने के दिन उन्होंने मुझे बताया कि दिल्ली में वह एक झुग्गी में दीगर मजदूरों के साथ रहे.

कमाई थी रोज़ का 90 रुपया, मगर इलाके के लोग उन्हें भूले नहीं और फोन कर वापस बुलाते रहे, 2 साल बाद लल्लू वापस लौटे और यूथ कांग्रेस के बूथ सद्र के तौर पर अपनी नई पारी की आगाज़ की, आंदोलन, धरना, मुज़ाहिरा, गिरफ़्तारी जैसे रोज़ का काम बन गया, लल्लू की मकबूलियत और जिद्दोदहद करने वाले अंदाज ने उन्हें 2012 के असेंबली इंतेखाबात में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर दस हज़ार वोटों से जीत दिलाई. अवाम का आदमी जो हमेशा आलमगीर था 2017 के इंतेखाबात में वे फिर जीते, जबकि भाजपा की ज़बरदस्त लहर थी. सूबाई सद्र बनते ही अजय कुमार लल्लू ने सभी जिलों का अथक दौरा किया और सोनभद्र कांड से लेकर, उन्नाव-शाहजहाँपुर रेप केस, बिजली मेहकमा DHFL घोटाला, CAA-NRC की खिलाफवर्ज़ी, किसान जन जागरण मुहिम में सबसे आगे रहकर अवाम की आवाज़ को उठाया और कयादत दी.

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उनके कयादत में हमारी तंज़ीम खुद को ईंट दर ईंट जोड़ एक जवाबदेह, करुणामयी और ऐसी निर्भीक ताकत बनने के अमल में आगे बढ़ रहा है जो सूबे के आम लोगों की आवाज़ को बुलंद करता है, जैसे ही कोरोना महामारी फैलनी शुरू हुई और अनप्लांड लॉकडाउन से लाखों गरीब परिवार दरबदर होने लगे, अजय लल्लू ने लोगों को राहत पहुंचाने के उप्र कांग्रेस के महाअभियान की कयादत शुरू की, हर जिले में पार्टी कारकुनों ने हेल्पलाइन शुरू की, खाने के पैकेट बांटे, सांझी रसोइयां चलाईं, उप्र में हमने 90 लाख लोगों को अपनी इजतेमाई कोशिशों से मदद पहुंचाई और दीगर सूबों में फंसे 10 लाख उत्तर प्रदेश के मुहाजिरीन को मदद पहुंचाई.

खिदमत और तआवुन की नियत से यूपी कांग्रेस ने अपने घरों को पैदल लौट रहे हज़ारों मुहाजिरीन की मदद करने के लिए अपनी तरफ से 1000 बसें चलाने की तजवीज़ उप्र हुकूमत को दी, तआवुन और खिदमत के जज़्बे से मुतास्सिर हमारे इस तजवीज़ से न जाने क्यों उप्र हुकूमत पहले दिन से ही बेचैन हो गई, पहले 17 मई को तो उन्होंने हमारे तजवीज़ को नकार दिया और यूपी के बॉर्डर से 500 बसों को वापस भेज दिया. 18 मई को फिर उन्होंने हमारी तजवीज़ कुबूल करते हुए बसों के दस्तावेज माँगे. उन्होंने गाड़ियों की लिस्ट के साथ ड्राइवरों के नाम, बसों की फिटनेस व पोल्यूशन सर्टिफिकेट के साथ हमें सिर्फ 10 घंटे का वक्त देकर सारी बसों को लखनऊ लाने को कहा. 

यह फैसला बिल्कुल बेतुका था क्योंकि मामला तो दिल्ली-यूपी बॉर्डर से मुाहजिरीन को ले जाने का था. खाली बसों को लखनऊ ले जाना हमें वक्त और वसायल की बर्बादी लगी, इस पर यूपी हुकूमत ने दलील दी कि 2 घंटे में अपनी बसों को नोयडा और गाजियाबाद के बॉर्डर पर खड़ा करें. इसी बीच हुकूमत ने भयानक गल्त तशरीह शुरू करके हम पर फर्जी फहरिस्त देने का इल्ज़ाम लगा दिया. उन्होंने इस हकीकत को नकार दिया कि हमारी 900 बसें आगरा के ऊँचा नगला बॉर्डर और 200 बसें नोएडा के महामाया पुल पर 19 मई की दोपहर से खड़ी थीं. 19 मई की रात अजय लल्लू गिरफ्तार कर लिए गए.

एक हज़ार से ज्यादा बसें चलने की इजाज़त का इंतज़ार करती खड़ी रहीं। दो दिनों बाद 1000 बसें खाली वापस लौट गईं. जब उन्हें लखनऊ पुलिस आगरा से लखनऊ जेल के लिए लेकर निकल रही थी तो मैंने किसी तरह से उनसे फोन पर बात की. मैं फिक्र मंद थी, "क्या ज]रुरत थी इस महामारी के वक्त गिरफ्तार होने की? अपनी सेहत का थोड़ा तो ख्याल रखिये", इससे पहले कि मैं पूरी बात कह पाती, फोन पर उनकी जोश भरी हंसी फूट पड़ी- "अरे दीदी, ये दमनकारी हुकूमत है इसके सामने मैं कभी भी सिर नहीं झुकाउंगा, आप मेरी फिक्र मत करो", 

अगली सुबह उनके ऊपर कई धाराओं में फर्ज़ी मुकदमें लाद दिए गये, इल्ज़ाम है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश हुकूमत को गाड़ियों के नम्बर गलत दिए, इसी जुर्म में वे आज तक लखनऊ जेल में कैद हैं, यह बीसवीं बार है जब उन्हें एक डरी हुई गैर जमहूरी हुकूमत ने हिरासत में लिया है. इतनी बे इंसाफी और दबाव के बाद भी वे बेखौफ और अजय हैं, जम्हूरियत और अदालत पर उन्हें पूरा यकीन है, कुर्बानी और खिदमत के लिए उनका जज्बा अजेय है, अजय लल्लू उस हिंदुस्तान के सच्चे शहरी हैं जिसके लिए महात्मा गांधी ने लड़ाई लड़ी थी, वे इंसाफ के हकदार हैं, उनके साथ इंसाफ होना चाहिए. -प्रियंका गांधी वाद्रा

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