क्रिकेटर मोहम्मद समी के रमज़ान के दौरान दिन में एनर्जी ड्रिंक पीने पर ट्रोल हो रहे हैं. इस्लाम में हर बालिग़ मर्द और औरत पर रमजान के रोज़े फ़र्ज़ किये गए हैं. लेकिन कुछ परिस्थितियों में रमजान के रोज़े छोड़ने और दिन में किसी वक़्त रोज़े तोड़ देने की छूट या हुक्म है. आइये जानते हैं, कब कोई इंसान रोज़े छोड़ या तोड़ सकता है.
Trending Photos
नई दिल्ली: क्रिकेटर मोहम्मद समी के रमज़ान के दौरान दिन में एनर्जी ड्रिंक पीने पर विवाद पैदा हो गया है. सोशल मीडिया पर मुस्लिम और कुछ उलेमा उन्हें ट्रोल कर रहे हैं. कुछ लोग जहाँ समी की हिमायत में उतर आये हैं, वहीँ कुछ लोग उन्हें मुसलामन होने का हवाला देकर खिंचाई कर रहे हैं.
दरअसल, इस वक़्त दुबई में चैंपियंस ट्रॉफी का मैच खेला जा रहा है. वहां अभी से बहुत तेज़ गर्मी पड़ रही है. शायद इसलिए बॉलर मोहम्मद शमी ने दिन में रोज़े न रखकर एनर्जी ड्रिंक ली हो, लेकिन ऐसा करके वह कट्टरपंथी तत्वों के निशाने पर आ गए हैं.
बरेली के ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के कौमी सद्र मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि इस्लाम में रोजा को फर्ज करार दिया गया है. जान बूझकर रोजा न रखना सबसे बड़ा गुनाह है. शरियत की नजर में मोहम्मद शमी मुजरिम है. शमी अपने गुनाहों के लिए अल्लाह से माफी मांगे.
रमजान के रोज़े हर बालिग मुसलमान औरत और मर्द पर फ़र्ज़ हैं, यानी उसे हर हाल में रोजा रखना है. हालांकि, इस्लाम में कुछ परिस्थितियों में रोजा तोड़ देना या रोजा न रखने की छूट दी गई है.
वो परिस्थितियां जिनमें कोई व्यक्ति रोजा तोड़ सकता है
1. रोज़े की हालत में किसी बिमारी के अचानक बढ़ जाने का खतरा
2. भूख और प्यास की शिद्दत इतनी हो जाये की बेहोश होने या जान जाने का खतरा हो जाए तो रोजा तोड़ा जा सकता है.
3. अगर किसी गर्भवती महिला को ये खतरा हो कि रोजा रखने से उसे या उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को कोई खतरा होने का अंदेशा हो तो, वह रोजा तोड़ सकती है.
4. अगर किसी दूध पिलाने वाली महिला को ये खतरा हो कि रोजा रखने से उसके बच्चे या उसपर खुद कोई खतरा हो तो, वो रोजा छोड़ सकती हैं.
वो परिस्थितियां जिनमें किसी शख्स को रोजा रखने से छूट दी गई है
1. बीमार आदमी को रोजा रखने से छूट मिली है. अगर कोई सर्टिफाइड डॉक्टर ये कह दे कि रोजा रखने से आप की बिमारी को बढ़ने या जान को खतरा हो सकता है, तो उसे रोजा न रखने की छूट दी गई है.
2. एकदम बूढ़ा आदमी या अत्यंत कमज़ोर आदमी जिसे रोजा रखने से जान जाने या बीमार पड़ने का खतरा हो तो उसे रोजा न रखने से छूट दी है.
3. मुसाफिर को रोजा न रखने की छूट है. हालांकि, मुसफ़िर होने के लिए ये शर्त है कि वह कम से 82 km की सफ़र कर रहा हो, और जहाँ जा रहा हो वहां उसे 15 दिनों से कम वक़्त तक ठहरना हो. लेकिन अगर इतनी दूरी बाइक, कार या किसी सवारी से कर रहे हों, तो रोजा रख लेना ज्यादा बेहतर होगा.
4.गर्भवती महिला को अगर ये खतरा हो कि उसे या उसके बच्चे को कोई खतरा हो सकता है, तो उसे रोजा नहीं रखना चाहिए.
5. दूध पिलाने वाली औरतों को रोजा रखने से छूट मिली है. ये एक माँ या फिर वैसी महिला पर भी लागू होती है, जो दूसरे के बच्चे को दूध पिलाती हो.
6. जिन महिलाओं को पीरियड चल रहा हो, उसे रोजा न रखने की हिदायत दी गई है. उसका रोजा रखने से भी नहीं होगा. वो बाद में इसका बदला कज़ा रोजा रख सकती हैं.
7.अगर किसी महिला को प्रसव हुआ है, तो उसे रोजा न रखने की हिदायत दी गई है. उसका रोजा रखने से भी नहीं होगा. वो बाद में इसका बदला कज़ा रोजा रख सकती हैं.
8. पागल, दीवाने या मानसिक रूप से अस्वस्थ्य किसी भी आदमी पर रोजा फ़र्ज़ नहीं है. उसे रोज़े से छूट मिली हुई है. उसपर कोई कज़ा भी नहीं होता है.
नोट.. बीमार, बूढ़ा, मुसाफिर, गर्भवती महिला या दूध पिलाने वाली महिला अपना कज़ा रोजा बाद में रख सकती हैं. और अगर वो बाद में भी रोजा रखने की हालत में वापस न आ सकें तो उन्हें फिदिया यानी कॉम्पेनसेशन देना होगा. एक दिन के रोज़े के कॉम्पेनसेशन के तौर पर लगभग ढाई किलों गेहू या इसकी कीमत अदा करने से रोज़े का कज़ा पूरा हो जाता है. हालांकि, बिना किसी मजबूरी के जानबूझकर रोजा तोड़ने का कॉम्पेनसेशन और दंड थोड़ा अलग होता है.
मुस्लिम माइनॉरिटी से जुड़ी ऐसी ही खबरों और जानकारियों के लिए विजिट करें https://zeenews.india.com/hindi/zeesalaam