सनीचर के रोज़ पूरा मुल्क 74वें यौमे आज़ादी का जश्न मनाएगा. यह दिन हिंदुस्तान को तवील जद्दोजेहद के बाद नसीब हुआ है. इस आज़ादी के लिए हमारे आबाओ अजदाद ने, हमारे बुज़ुर्गों और पुरखों ने अनगिनत क़ुर्बानियों का नज़राना पेश किया.
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सनीचर के रोज़ पूरा मुल्क 74वें यौमे आज़ादी का जश्न मनाएगा. यह दिन हिंदुस्तान को तवील जद्दोजेहद के बाद नसीब हुआ है. इस आज़ादी के लिए हमारे आबाओ अजदाद ने, हमारे बुज़ुर्गों और पुरखों ने अनगिनत क़ुर्बानियों का नज़राना पेश किया. जानों माल की क़ुर्बानियां दीं, तहरीकें चलाई, तख़्तो दार पर चढ़े, फांसी के फंदे को जुर्रत, हौसला और बहादुरी के साथ बख़ूबी गले लगाया. हिंदुस्तान में बसने वाली हर क़ौम, हर मज़हब ने बराबर से अपनी हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी अदा की. इन्हीं मुजाहिदीने आज़ादी की याद में हम आपके के लिए कुछ गीत पेश कर रहे हैं. जिन्हें पढ़कर आपको उन शहीदों की याद आएगी जिन्होंने आज़ादी की जंग में हमारे लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया.
मिले उनको जन्नत में आला मकाम
वतन के शहीदों को मेरा सलाम
वतन में जो यूं शादो आबाद हैं हम
उन्हीं की बदौलत तो आज़ाद हैं हम
करो याद उनको बसद ऐहतराम
वतन के शहीदों को मेरा सलाम
भगत सिंह सुखदेव अशफाक-ओ-अजमल
जिन्होंने मचाई थी गोरों में हलचल
भले जान दी पर बने ना गुलाम
वतन के शहीदों को मेरा सलाम
मुअज्ज़म अली और टीपू व हैदर
बटू केश्वर दत्त उधम सिंह शेखर
जो करते थे गोरों की नींदे हराम
वतन के शहीदों को मेरा सलाम
शहीदों से है हमको बेहद मुहब्बत
उन्हें दे रहा है खिराजे अकीदत
ये शमशीर गाज़ी तुम्हारा कलाम
वतन के शहीदों को मेरा सलाम
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2
आज हम सब शाद हैं अपना वतन आज़ाद है
हम हैं बुलबुल जिस चमन के वो चमन आज़ाद है
आज आज़ादी का दिन है आओ हम ख़ुशियाँ मनाएँ
नाच आज़ादी का नाचें गीत आज़ादी के गाएँ
थी घटा छाई हुई अंधेर की वो छट गई
तेग़-ए-आज़ादी से ज़ंजीर-ए-ग़ुलामी कट गई
आज वो दिन है हुई थी देश की जनता की जीत
आज ही के दिन चली थी इस में आज़ादी की रीत
आज वो दिन है तराने ऐश के इशरत के गाएँ
आज वो दिन है कि तानें मिल के ख़ुशियों की उड़ाएँ
क़ौम जो आज़ाद है दुनिया में इज़्ज़त उस की है
आन उस की शान उस की और अज़्मत उस की है
देश के बच्चे भी ख़ुश हैं क्यों न हो इन की ख़ुशी
खिल गई है फूल बन कर आज हर दिल की कली
दिल लगी है चहल है और हर तरफ़ हैं क़हक़हे
हैं ये बुलबुल इस चमन के कर रहे हैं चहचहे
दिल में जज़्बा है जवाँ हो कर सभी आगे बढ़ें
अज़्म है ये जान-ओ-दिल से देस की ख़िदमत करें
अम्न-ओ-आज़ादी का हम पैग़ाम दुनिया को सुनाएँ
देस की अपने बड़ाई अपने कामों से दिखाएँ
फ़र्ज़ अपना हम करें दिल से अदा और जान से
हो वफ़ादारी हमारी अपने हिन्दोस्तान से
एक इक बच्चा गई हो इल्म का चर्चा बढ़े
एक इक बच्चा धनी हो देस की सेवा करे
एक इक बच्चा रहे बढ़ चढ़ के गुन और ज्ञान में
इक से इक बढ़ कर दिखाए आप को विज्ञान में
आओ 'नय्यर' देस के बच्चों की झुरमुट में तुम आओ
आओ आओ नज़्म आज़ादी की बच्चों को सुनाओ
आओ सब ना'रा लगाएँ ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
आओ हम सब मिल के गाएँ ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
ज़िंदाबाद, हिन्दोस्तान - ज़िंदाबाद
===मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर====
3.
ज़मीन-ए-हिन्द है और आसमान-ए-आज़ादी
यक़ीन बन गया अब तो गुमान-ए-आज़ादी
पहाड़ कट गया नूर-ए-सहर से रात मिली
ख़ुदा का शुक्र ग़ुलामी से तो नजात मिली
हवा-ए-ऐश-ओ-तरब बादबान बन के चली
ज़मीं वतन की नया आसमान बन के चली
कहाँ हैं आज वो शम्-ए-वतन के परवाने
बने हैं आज हक़ीक़त उन्हीं के अफ़्साने
हिजाब उठ गए अब किस की पर्दा-दारी है
ग़ज़ब की दीदा-ए-नर्गिस में होशियारी है
कली ने माँग बड़े हुसन से सँवारी है
हसीन फूलों में रंग-ए-ख़ुद-इख़्तियारी है
ज़मीन अपनी फ़ज़ा अपनी आसमान अपना
हुकूमत अपनी अलम अपना और निशान अपना
हैं फूल अपने चमन अपने बाग़बान अपना
इताअत अपनी सर अपना है आस्तान अपना
जमाल-ए-काबा नहीं या जमाल-ए-दैर नहीं
सब अपने ही नज़र आते हैं कोई ग़ैर नहीं
========सिराज लखनवी========\
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