Tamil Nadu: इरुला समाज से ताल्लुक़ रखने वाली बी श्रीमथि तिरुनेलवेली गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में मेडिकल सीट हासिल करने वाली पहली महिला बन गई हैं जिसके बाद पूरे गांव में जश्न का माहौल है.
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Tamil Nadu: कहते है कि अगर इंसान में कुछ करने का जज़्बा हो तो फिर उसे कामयाबी ज़रूर मिलती है. कुछ ऐसा ही आदिवासी महिला, बी. श्रीमथि के साथ हुआ. इरुला समाज की एक नौजवान आदिवासी महिला, बी. श्रीमथि याद करती हैं कि जब वह बच्ची थीं तो कैसे शोलूर मट्टम के पास एक गांव में हर दिन स्कूल जाने के लिए पांच किलोमीटर पैदल चलती थीं. बरसों की कड़ी मेहनत के बाद 20 साल की बी श्रीमथि को बड़ी कामयाबी मिली. वह अपने समाज से तिरुनेलवेली गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में मेडिकल सीट हासिल करने वाली पहली महिला बन गई हैं जिसके बाद पूरे गांव में जश्न का माहौल है.
MBBS में मिला दाख़िला
जब बी. श्रीमथि को एमबीबीएस कोर्स के लिए तिरुनेलवेली गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में दाख़िला मिला, तो उन्होंने इतिहास रच दिया. क्योंकि वह अपने इरुला आदिवासी समुदाय से डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल की स्टडी करने वाली पहली ख़ातून हैं. उन्होंने बताया कि उनकी कामयाबी से समाज के लोगों को अपनी पसंद का करियर चुनने में मदद मिलेगी और उनके सपनों को नए पंख मिलेंगे. न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए बी. श्रीमथि ने बताया कि उनके पिता एक टीचर हैं. उन्होंने बताया कि "मैं बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहती थी, मैंने अपने सपनों का पीछा किया, कड़ी मेहनत की और आख़िरकार मैं यहां तक पहुंच गई".
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हुकूमत से मदद की अपील
तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले की इरुला समाज की लड़की ने कहा कि एमबीबीएस करने के बाद वह चाइल्ड स्पेशलिस्ट बनना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि वह नीलगिरी ज़िले की आदिवासी छात्राओं के साथ-साथ पूरी रियासत के आदिवासी समाज के स्टूडेंट के लिए एक मॉडल बनना चाहती हैं. बी. श्रीमथि ने कहा कि माली हालात कमज़ोर होने और पॉलिसियों के बारे में जागरूकता की कमी से आदिवासी तबक़े के स्टूडेंट डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, वकील और जर्नलिस्ट बनने के अपने ख़्वाब को पूरा करने में नाकाम हो रहे हैं. हुकूमत को चाहिए कि नीलगिरी ज़िले के इरुला समाज के बच्चों के लिए पढ़ाई के माहौल को दोस्ताना बनाया जाए ताकि वो आला तालीम हासिल कर सकें.
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