जमीयत के इजलास में कई तजवीज़ पेश गईं जिनमें इस्लामोफ़ोबिया की रोकथाम का मुतालबा, धर्म संसद की तर्ज़ पर 1000 जगह सद्भावना संसद के एहतमाम का ऐलान, लॉ कमीशन की 267 वीं रिपोर्ट पर क़दम उठाने की ज़रूरत है.
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हिंदुस्तानी मुसलमानों की सबसे बड़ी तंज़ीम जमीयत उलमा-ए-हिंद का दो दिनों का इजलास आज से शुरू हुआ. इस इजलास में 25 रियासतों के नुमाइंदे इस्लाम के खिलाफ झूठी तश्हीर से निपटने की तरग़ीब पर चर्चा कर रहे हैं. मुसलमानों का ये इजलास इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्यूंकि अयोध्या की बाबरी मस्जिद के बाद अब वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह, आगरा का ताजमहल, दिल्ली का क़ुतुब मीनार के साथ-साथ अजमेर दरगाह पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
इजलास की पहले दिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के चीफ़ मौलाना महमूद मदनी अपनी स्पीच के दौरान जज़्बाती हो गए और कहा के मुल्क में नफ़रत का बाज़ार सजाया जा रहा है, हमें अपने ही मुल्क में अजनबी बना दिया गया लेकिन हम आग को आग से नहीं बुझा सकते और हमें मायूस होने की भी ज़रूरत नहीं है. मदनी ने आगे कहा कि बेइज़्ज़त होकर ख़ामोश होना कोई मुसलमानों सीखे, मुसलमानों का राह चलना मुश्किल हो गया है, हमारे सब्र का इम्तिहान लिया जा रहा है, हमें उकसाया जा रहा है लेकिन हम नफ़रत का जवाब मुहब्बत से ही देंगे.
जमीयत के इजलास में कई तजवीज़ पेश गईं जिनमें इस्लामोफ़ोबिया की रोकथाम का मुतालबा, धर्म संसद की तर्ज़ पर 1000 जगह सद्भावना संसद के एहतमाम का ऐलान, लॉ कमीशन की 267 वीं रिपोर्ट पर क़दम उठाने की ज़रूरत है, जमीयत ने जस्टिस एंड एम्पावरमेंट इनीशिएटिव फॉर इंडियन मुस्लिम नाम से एक शोबा बनाया है. इसका मक़सद नाइंसाफी और ज़ुल्म को रोकने, अम्न और इंसाफ़ बनाए रखने की पॉलिसी पर काम करना है.
ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर जमीयत उलमा-ए-हिंद के नेशनल सेक्रेटरी मौलाना नियाज़ अहमद फ़ारूक़ी ने कहा, "इस मुल्क में सभी शासकों ने ग़लतियां की हैं जिसकी सज़ा आज का हिंदुस्तानी मुसलमान भुगत रहा है. इन्हें सुधारने के लिए एक साथ बैठकर हल निकालना होगा. इससे बड़ा तो हमारा दिल है. जहां पर भगवान और अल्लाह बस्ते हैं. हम अपने दिलों को तक़सीम कर देंगे तो इन मंदिरों-मस्जिदों का क्या होगा. अगर हमारे दिल सही रहेंगे तो हमारा मकसद मज़हबी रहेगा. ऐसा कोई तनाज़ा न हो जिससे हमारे रिश्ते टूटे. फिर चाहे ये मंदिर और मस्जिद टूटे या बने इससे फर्क नहीं पड़ेगा."
नदीम अहमद
लेखक ज़ी सलाम चैनल से जुड़े हैं.
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