शर्मनाक: चीखते, बिलखते और उजड़ते यूक्रेन को तमाशा समझकर देख रही है दुनिया
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शर्मनाक: चीखते, बिलखते और उजड़ते यूक्रेन को तमाशा समझकर देख रही है दुनिया

रूस -यूक्रेन जंग का 11वां दिन है. यूक्रेन के कई शहरों पर बम बरस रहे हैं. हालांकि गुज़िश्ता रोज़ रूस ने मारियुपोल और वोल्नोवाखा में वक़्ती सीज़फ़ायर का ऐलान किया है. लेकिन जंग थमेगी कब. ये कहना मुशकिल है

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नई दिल्ली: आसमानों में उड़ते जंगी जहाज़, चारो तरफ़ सायरन की आवाज़, पल भर में ढेर होती गगनचुंबी इमारतें, उजड़ते शहर, बर्बाद होते बाज़ार, चिल्लाती मांए, रोते बुज़ुर्ग,  बिलखते बच्चे, आग की लपटों में राख होते हज़ारों अरमान...चारो तरफ़ चीख़ पुकार...तरक़्क़ी के इस दौर में हमने ये तो न सोचा था. सोचा तो ये था कि दुनियाभर के साइंटिस्ट इतने आगे निकल चुके हैं कि विकास की रौशनी धरती के आख़िरी टुकड़े तक पहुंचाने की जद्दोजहद कर रहे होंगे ताकि इस दुनिया का कोई भी कोना अंधेरे में न रहे लेकिन अंधेरा तो और घना हो गया है.

इस पहाड़ रात की सुबह कब होगी ये तो नहीं बताया जा सकता लेकिन सुबह का उजाला दुनिया को शर्मिंदा ज़रूर करेगा. जंग रुकेगी तो जख़्म भर जाएंगे लेकिन इन ज़ख़्मों के निशान तारीख़ के बदन पर चीख़-चीख़ कर गवाही देंगे कि दो मुल्कों की अना की लड़ाई में इंसानियत हार गई, तहज़ीब हार गई, उसूल हार गए, शरीफ़ लोग हार गए, अम्न वाले हार गए, सच कहूं तो ये दुनिया ही हार गई है. क्योंकि दुनिया आग में घी तो नहीं डाल रही है मगर जलते शहरों की लपटों पर ख़ामोशी शिकस्त का पैग़ाम ज़रुर सुना रही है.

बरतरी के सुबूत की ख़ातिर
ख़ूं बहाना ही क्या ज़रूरी है

घर की तारीकियाँ मिटाने को
घर जलाना ही क्या ज़रूरी है

फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है

जंग के और भी तो मैदाँ हैं
सिर्फ़ मैदान-ए-किश्त-ओ-ख़ूँ ही नहीं

अम्न को जिन से तक़्वियत पहुँचे
ऐसी जंगों का एहतिमाम करें

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रूस -यूक्रेन जंग का 11वां दिन है. यूक्रेन के कई शहरों पर बम बरस रहे हैं. हालांकि गुज़िश्ता रोज़ रूस ने मारियुपोल और वोल्नोवाखा में वक़्ती सीज़फ़ायर का ऐलान किया है. लेकिन जंग थमेगी कब. ये कहना मुशकिल है. पुतिन की फौज यूक्रेन में 5 शहरों को हथियाने के लिए जबरदस्त हमलों को अंजाम दे रही है. कीव के लिए जंग जारी है, खारकीव पर बम बरस रहे हैं, लेकिन खारकीव अभी टूटा नहीं है. मारियुपोल, चेर्निहाइव और ओडेसा को जीतने की कोशिश है. खेरसॉन पर रूसी क़ब्ज़ा हो चुका है और रूस इसे आज़ाद  करने का प्लान बना रहा है, बाकी पांच अहम शहरों पर रूसी बमबारी जारी है.

यूक्रेन में हो रही जंग का असर बच्चों पर संजीदा तौर पर पड़ रहा है. जहां शहर-शहर स्कूल की इमारतें हमलों का शिकार हो रही हैं. बच्चों का घर छूट रहा, बेघर हो रहे बच्चे मुल्क छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं. बच्चों का ये दर्द सिर्फ़ घर छोड़ने तक ही महदूद नहीं है, उनकी किताबें मलबे में दबी जा रही हैं. अभी पता नहीं कि हमलों में बच्चों के स्कूल की इमारतें कब तक निशाना बनाई जाती रहेंगी. हमलों के बीच बच्चों के खिलौने मलबे में दिख जाने पर मन खराब हो जाता है. न जाने ऐसी तस्वीरें अभी और कितनी आनी हैं?

रूस-यूक्रेन के बीच जंग का आज 10वां दिन हैं. जिसकी वजह से यूक्रेन के आम शहरियों के साथ साथ. वहां रहने वाले ग़ैर मुल्की शहरियों को भी काफी परेशानी हो रही है. जिसमें हिंदुस्तानी स्टूडेंट भी शामिल हैं, जो इस जंग की वजह से भारी तादाद में यूक्रेन के अलग अलग शहरों से भाग रहे हैं, तो वहीं अपने शहरियों को निकालने के लिए भारत भी तेजी से काम कर रहा है.

ये जंग किसी हल की तरफड़ नहीं बढ़ रही है. बढ़े भी कैसे, क्योंकि साहिर लुधियानवी कह गए हैं कि- जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल होगी. जंग टलती रहे और बातों से बात बनती रहे ये दुनिया के बड़े इदारों और शरीफ़ इंसानों की ज़िम्मेदारी है. लेकिन वो अपनी ज़िम्मेदारी अदा करने में नाकाम रहे हैं और इंसानियत के हिस्से में आई है ये बर्बाद.

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