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आसान भाषा में समझिए क्या है कॉमन सिविल कोड, जिसका विरोध कर रहा है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

मौजूदा वक्त में देश में हर धर्म के लोग शादी, तलाक, जायदाद का बंटवारा और बच्चों को गोद लेने जैसे मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के हिसाब से करते हैं.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है. इससे मुस्लिम संगठनों में यह उम्मीद जगी है कि नागरिकता संशोधन बिल (CAA) भी वापस हो सकता है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने CAA को वापस लेने की मांग की है. इसी के साथ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का भी विरोध किया है. बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें सभी धर्म के लिए संवैधानिक अधिकार का जिक्र करते हुए समान नागरिक संहिता को न मानने की बात कही.

क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नारिकता संहिता का मतलब है भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून, चाहे वह किसी भी मजहब या जाति का हो. समान नागरिक संहिता लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा. मौजूदा वक्त में देश में हर धर्म के लोग शादी, तलाक, जायदाद का बंटवारा और बच्चों को गोद लेने जैसे मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के हिसाब से करते हैं. मुस्लिम, ईसाई और पारसी का पर्सनल लॉ है, जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौध आते हैं. 

संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की जिम्मेदारी बताया गया है, लेकिन ये आज तक देश में लागू नहीं हो पाया है.

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समान नागरिक संहिता के विरोधियों की क्या है दलील
समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि अगर सबके लिए समान कानून लागू कर दिया गया तो उनके अधिकारों का हनन होगा. मुसलमानों को तीन शादियां करने का अधिकार नहीं रहेगा. अपनी बीवी को तलाक देने का हक नहीं होगा. वह अपनी शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं कर सकेंगे.

समान नागरिक संहिता की हिमायत करने वालों की दलील
कॉमन सिविल कोड को लागू करने के पक्ष में लोगों की दलील है कि अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है. समान नागरिक संहिता लागू होने से न्यायपालिका में लंबित मामले आसानी से सुलझ जाएंगे. इसके लागू होने से शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा. मौजूदा वक्त में सभी मजहब इन मामलों का बंटवारा अपने कानून के मुताबिक करते हैं. कॉमन सिविल कोड की हिमायत करने वालों का कहना है कि इससे महिलाओं की स्थित मजबूत होगी क्योंकि कुछ धर्मों में महिलाओं के बहुत सीमित अधिकार है.

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