जानिए क्या है एमएसपी, जिसके लिए किसान और अपोज़ीशन पार्टियां कर रही हैं प्रोटेस्ट
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जानिए क्या है एमएसपी, जिसके लिए किसान और अपोज़ीशन पार्टियां कर रही हैं प्रोटेस्ट

हालांकि खुद वज़ीरे आज़म नरेंद्र मोदी और मरकज़ी वज़ीरे ज़राअत नरेंद्र सिंह तोमर ने यह साफ अल्फाज़ में कहा है कि किसानों को उनकी फसलों पर मिलने वाला एमएसपी पूरी तरह से महफूज़ है.

फोटो बशुक्रिया ANI

नई दिल्ली: मरकज़ की नरेंद्र मोदी हुकूमत के ज़रिए कृषि (ज़राअत) में बेहतरी लाने के मकसद से पार्लियामेंट के दोनों हाउसों में तीन बिल पास कराए हैं. हालांकि इन बिलों को लेकर अपोज़ीशन पार्टियां बुरी तरह खफा हैं और पंजाब, हरियाणा समेत कई सूबों के किसान भी इस इन बिलों की मुखालिफत कर रहे हैं. किसानों को फिक्र है कि उन्हें अपनी फसलों पर मिलने वाला एमएसपी (Minimum Support Price) खत्म होने का खदशा है. यहां तक कि इस बिल की मुखालिफत में मोदी कैबिनेट मिनिस्टर्स में शामिल पंजाब की अपोज़ीशन पार्टी अकाली दल लीडर हरसिमरत कौर ने इस्तीफा भी दे दिया है. 

हालांकि खुद वज़ीरे आज़म नरेंद्र मोदी और मरकज़ी वज़ीरे ज़राअत नरेंद्र सिंह तोमर ने यह साफ अल्फाज़ में कहा है कि किसानों को उनकी फसलों पर मिलने वाला MSP पूरी तरह से महफूज़ है. तो आइए हम आपको बताते हैं कि आखिर यह एमएसपी (MSP) है क्या. जिसको लेकर सियासत में हलचल मची हुई है. 

एमएसपी क्या है
एमएसपी वो रकम है जो हुकूमत हर फसल के सीजन से पहले कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस (सीएसीपी,Commission for Agricultural Costs and Prices) की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है. यदि किसी फसल की बहुत ज्यादा पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती है, तब एमएसपी उनके लिए तय कीमत का काम करती है. यह एक तरह से कीमतों में गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है.

कब और कैसे हुई लागू
दरअसल 1950-60 की दहाई में किसान अपनी फसलों की बर्बादी को लेकर बहुत परेशान थे. फसलों की ज्यादा पैदवारी होने पर बाज़ार में उनको मुनासिब कीमत नहीं मिल पाती थी, यहां तक कि उनकी लागत भी पूरी नहीं हो पाती थी. जिसके बाद किसानों ने आंदोलन करना शुरू कर दिया. जिसको देखते हुए साल 1965 में इसपर मुहर लगाई थी और 1966-67 में पहली बार गेहूं और धान का एमएसपी तय किया गया था. 

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