Shakeel Badayuni Birthday Special: आज़ीम गीतकार शकील बदायूंनी का नाम ज़बान पर आते ही चेहरे पर एक खुशी सी तारी हो जाती है. उन्होंने उर्दू शायरी में अपना एक मुनफरिद मकाम बनाया. शकील बदायूंनी के फिल्मी गीत और गज़लें आज भी लोगों की ज़बान पर रहती हैं. उन्होंने मुग़ले आज़म, गंगा जमना, मदर इंडिया, अमर, सन ऑफ इंडिया, दिल्लगी, दीदार, मेला, दर्द, दास्तान, आदमी जैसी कई बड़ी दीगर फिल्मों के नग़में लिखे हैं.


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शकील बदायूंनी ने नौशाद अली, रवि, हेमंत कुमार जैसे अज़ीम मौसीकार के साथ काम किया. इनके गीतों को मौहम्मद रफी, तलत महमूद, लता मंगेशकर, मुकेश, शमशाद बेगम, महेंद्र कपूर, जैसे मशहूर गुलूकारों ने इनके गीत को आवाज़ देकर अपनी पहचान कायम की.


शकील बदायूंनी 1916 को उत्तर प्रदेश के ज़िला बदायूं मे पैदा हुए थे. उनका तअल्लुक एक मज़हबी और अदबी घराने से था. शकील की इब्तेदाई तालीम भी इस्लामी मकतब में हुई थी. उर्दू, फारसी और अरबी की तालीम के बाद उन्होंने मिस्टन इस्लामिया हाई स्कूल बदांयू से सनद हासिल की. आला तालीम के लिए उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का रुख किया. तालीम मुकम्मल करने बाद इन्होंने दिल्ली में नौकरी की और यहां पर ये अक्सर मुशायरों में शिरकत किया करते थे. एक दिन शकील साहब की मुलाकात फिल्मी दुनिया की एक अज़ीम शख्सियत अब्दुल राशिद कारदार से हुई. उन्होंने इनको मुंबई बुलाया.


मुंबई में अब्दुल राशिद कारदार ने उनकी मुलाकात उस वक्त के मशहूर मौसीकार नौशाद साहब से कराई. नौशाद साहब ने अपने अंदाज़ में एक धुन पर कुछ लिखने को कहा, शकील साहब ने एक मिनट में ही बेहद आसानी से ये शेर लिख दिया: "हम दर्द का अफसाना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मुहब्बत की इक आग लगा देंगे". शकील साहब के इस शेर से नौशाद साहब इतने मुतास्सिर हुए कि उन्होंने दर्द फिल्म के सभी नग़में उन्हीं से लिखने को कह दिया. शकील साहब के नग़मों की बदौलत ही दर्द फिल्म उस वक्त की सुपहिट फिल्म साबित हुई. अपनी इस कामयाबी के बाद उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. शकील साहब 53 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गए.


शकील बदायूंनी के मशहूर शेर-
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया 
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया 
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Poetry on Memories: 'ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें', यादों पर चुनिंदा शेर



कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है 
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है 
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अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे 
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे 
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मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन 
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया 
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काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ
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तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो 
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना 
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मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतना 
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए 
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