Opinion: क्या वक्फ कानून की आड़ में पसमांदा मुसलमानों को साधने में कामयाब होगी केंद्र सरकार ?
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Opinion: क्या वक्फ कानून की आड़ में पसमांदा मुसलमानों को साधने में कामयाब होगी केंद्र सरकार ?

Waqf Amendment Act 2025 and Pasmanda Muslims:  केंद्र सरकार संशोधित वक्फ कानून का फायदा बताकर देश के पसमांदा मुसलमानों को साधने की कोशिश कर रही है. वहीँ पसमांदा अन्दोलान के नेता अली अनवर ने सरकार से पूछा है कि मॉब लिंचिंग और गौ रक्षकों के हमलों के शिकार होने वाले 99 फीसदी लोग पसमांदा मुसलमान होते हैं. गुजरात की बिल्कीस बानों भी पसमांदा मुसलमान थी, जिसके बलात्कार के दोषियों को सरकार ने रिहा करवा दिया, तो पसमांदा सरकार पर भरोसा क्यों और कैसे कर सकता है? 

  Opinion: क्या वक्फ कानून की आड़ में पसमांदा मुसलमानों को साधने में कामयाब होगी केंद्र सरकार ?

संशोधित वक्फ कानून को लेकर केंद्र सरकार सहित पूरी भाजपा मण्डली का दावा है कि ये कानून मुसलमानों के बीच ही हासिये पर रहने वाले पसमांदा और उपेक्षित मुसलमानों की गरीबी और तंगहाली दूर करने में मील का पत्थर साबित होगी. सरकार का तर्क है कि इस क़ानून में पहली बार वक्फ बोर्ड में महिलाओं समेत पसमांदा मुसलमानों को प्रतिनिध्तित्व दिया गया है..

पार्टी में खुद हासिये पर भेज दिए गए अशराफ बिरादरी के भाजपा के नेता मुख़्तार अबास नकवी, सैयद शाहनवाज़ हुसैन और सैयद जफ़र इस्लाम पार्टी के स्टैंड के मुताबिक इस कानून का समर्थन कर रहे हैं. भाजपा से जुड़े राष्ट्रीय मुस्लिम मंच और भाजपा समर्थित कुछ मुस्लिम संगठन और उलेमा भी केंद्र सरकार के इस कानून की खुलकर हिमायत कर रहे हैं. पार्टी ने कहा है कि वो पसमांदा मुसलमानों के बीच जायेगी और इस कानून के लिए सरकार और पार्टी के समर्थन के लिए उनकी हिमायत हासिल करेगी. 

संशोधित वक्फ कानून पर सरकार को दाऊदी बोहरा समुदाय का भी समर्थन मिल गया है. जब सुप्रीम कोर्ट इस कानून के खिलाफ गुरुवार को सुनवाई कर रही थी, वहीँ दूसरी तरफ दाऊदी बोहरा समुदाय का एक प्रतिनिधिमंडल वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उनका आभार जाता रहा था. दाऊदी बोहरा समुदाय ने इसे अपने समुदाय की लंबे अरसे से लंबित मांग बताया है. 

गौरतलब है कि दाऊदी बोहरा मुख्य रूप से पश्चिम भारत का एक शिया मुस्लिम समुदाय है, जिसके सदस्य दुनिया भर के 40 से ज्यादा मुल्कों में बसे हुए हैं. दाऊदी बोहरा समुदाय अपनी विरासत का श्रेय मिस्र में पैगंबर मुहम्मद के प्रत्यक्ष वंशज फातिमी इमामों को देता है. दुनिया भर में दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग अपने नेता अल-दाई अल-मुतलक को अपना धार्मिक गुरु मानते हैं, और उनके आदेशों का पालन करते हैं. 

शिया मुसलमानों का यह समुदाय भारत में मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में रहता है. यह एक कारोबारी समाज है. प्रधानमंत्री इसके हर बड़े धार्मिक आयोजनों में दिख जाते हैं, और जब विदेशी दौरे पर होते हैं, तो बोहरा मुसलमान उनकी अगुवाई और स्वागत में पहली पंक्ति में खड़ा मिलता है. बोहरा मुसलमान भाजपा को दिल खोलकर चंदा देता है, और बदले में वो भाजपा की केंद्र सरकार से अपने समुदाय के खिलाफ उठने वाली 'कोठार प्रथा' और 'महिलाओं में खतना' प्रथा की आवाज़ और मुकदमों से सुरक्षा पाता है.

वहीँ, कई मुद्दों पर भाजपा सरकार की हिमायत करने वाला शिया समुदाय इस बार संशोधित वक्फ कानून पर सरकार से सुन्नी मुसलमानों की तरह ही नाराज़ दिख रहा है, क्यूंकि इस कानून का विस्तार शिया और सुन्नी दोनों वक्फ बोर्ड पर सामान रूप से लागू होगा, और संभावित खतरे दोनों के लिए एक समान दिख रहा है. 

शिया धर्म गुरु कल्बे जव्वाद ने संशोधित वक्फ कानून को काला कानून और सरकार की साजिश बताया है. उन्होंने कहा है कि सरकार इस कानून के जरिये मुसलमानों की वक्फ की जायदाद को नष्ट करना चाहती है. उन्होंने कहा कि उनकी आखिरी उम्मीद अब मुल्क की अदालत से है. सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ जो दो दर्ज़न से जयादा मुक़दमे दायर हुए हैं, उनमे से एक पक्ष शिया समुदाय भी है. 
 

केंद्र सरकार में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के मुस्लिम नेता या पसमांदा तबके से ताल्लुक रखने वाले नेता ज़रूर इस कानून को पसमांदा मुसलमानों के हक़ में बता रहे हैं, लेकिन पसमांदा आन्दोलन की शुरुआत करने वाले बड़े मुस्लिम नेता इस कानून को भाजपा सरकार का एक धोखा मान रहे हैं. 

आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक और पूर्व JDU नेता डॉक्टर अली अनवर ने इंडिया टुडे को दिए अपने एक इंटरव्यू में संशोधित वक्फ कानून को लेकर  भाजपा के इरादे पर सवाल उठाते हुए कहा, " वो दुआ जीने की करते हैं, दवा मरने की देते हैं." यही उनकी फितरत है. इस कानून में ऐसा नया कुछ भी नहीं है. पसमांदा या औरत को बोर्ड में शामिल न करने को लेकर पहले भी कोई प्रावधान नहीं था. अगर अब एक दो लोग बोर्ड में शामिल भी हो जाएंगे तो उससे क्या होगा ? 

इसमें अगर अशराफ मुसलमान काबिज़ हैं, तो इसके ऐतिहासिक कारण हैं. चूंकि, जो लोग वक्फ में सम्पत्ति दान देते हैं, वो अशराफ मुसलमान थे, तो वो अपने लोगों को इसका केयरटेकर बना देते थे. लेकिन वो उस सम्पत्ति को बेच नहीं सकते थे. इसके बावजूद सरकारों से मिलकर वक्फ की संपत्ति का बंदरबांट किया गया, तो इसके लिए अकेले अशराफ जिम्मेदार नहीं है, बल्कि सरकार भी बराबर की हिस्सेदार रही है. सरकार पसमांदा का फायदा दिखाकर वक्फ की जायदाद हड़पना चाह रही है. सरकार अगर ईमानदार है, तो वक्फ के लंबित मुकदमों का निपटारा क्यों नहीं करती है?    

अगर सरकार को पसमांदा की चिंता है तो उसे शिक्षा और रोजगार में आरक्षण दे.. सियासत में प्रतिनिधित्व दे. उसकी जान की हिफाज़त करे.. देश में जितने लोग मॉब लिंचिंग में मारे गए, या गौ रक्षकों के हमलों के शिकार होते हैं, इनमे 99 परसेंट लोग पसमांदा समाज के होते हैं. सरकार उनकी हिफाज़त के लिए क्या कर रही है? 
गुजरात में सामूहिक बलात्कार की शिकार और पूरे परिवार को साम्प्रदायिक दंगों में खोने वाली बिल्कीस बानो पसमांदा मुसलमान थी, लेकिन केंद्र सरकार ने उम्र कैद की सजा पाए बिल्कीस बानो के 17 दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया ? ये पसमांदा के साथ सरकार का कैसा इन्साफ है? 

अली अनवर साफ़ शब्दों में कहते हैं कि मोदी सरकार से देश के पसमांदा तबका नाराज़ है. उसे पता है कि नए कानून से उसका कोई भला नहीं होने वाला है क्यूंकि सरकार की मंशा साफ़ नहीं है. 

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद एक बयान देकर देशभर के पसमांदा मुसलमानों के निशाने पर आ गए हैं. प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर वक्फ बोर्ड की जायदाद का सही इस्तेमाल किया गया होता तो 70 सालों से मुस्लिम समाज के लोग पंचर नहीं लगा रहे होते. मोदी के इस बयान पर खासकर पसमांदा मुसलमानों के बीच अच्चा सन्देश नहीं गया है. पसमांदा मुसलमानों के नेता भी पूछ रहे हैं कि आखिर पिछले दस सालों में केंद्र की भाजपा सरकार ने पसमांदा मुसलमानों के लिए क्या किया है ? सरकार ने उनको मिलने वाले एजुकेशन स्कॉलरशिप क्यों बंद कर दिया ? शिक्षा और रोजगार में उनके लिए क्या प्रावधान किये गए हैं? क्या सरकार अति पिछड़े और दलित मुसलमानों को SC का दर्ज़ा देने के लिए तैयार है ?  

पंचर वाले बयान पर लोगों ने पूछा है कि प्रधानमंत्री के ये दोहरा रवैय्या क्यों है.. एक तरफ तो वह देश के पढ़े- लिखे नौजवानों को चाय- पकौड़ा बेचने की सलाह देते हैं, वहीँ मुसलमानों के पंचर की दुकान से उन्हें क्यों दिक्कत है? क्या ईमानदारी से पंचर की दुकान चलाने में क्या बुराई है? प्रधानमंत्री ऐसे बयान देकर आत्मनिर्भर गरीब मुसलमानों का चरित्रहनन करना चाहते हैं.

:- हुसैन ताबिश

लेखक जी न्यूज़ में एसोसिएट न्यूज़ एडिटर हैं. यहाँ व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं. 

 

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