Hazrat Ali Death Anniversary: इस्लाम के आखिरी पैगम्बर मुहम्मद (स.) के दामाद और मुसलमानों के चौथे खलीफा हजरत अली 21 रमज़ान सन 40 हिजरी को इस दुनिया से रुखसत हो गए थे.. उनके आखिरी दिनों के हालत का जिक्र कर रहे हैं, सैय्यद अब्बास मेहँदी.
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हज़रत अली ने अपनी ज़िदंगी के आख़िरी दिनों में कभी इशारों में तो कभी दलीलों के साथ अपनी शहादत के वक़्त और तफ़सील को बयान किए बग़ैर लोगों को अपनी शहादत से आगाह किया...13 रमज़ान 40 हिजरी जुमे का ख़ुत्बा देते हुए इमाम अली ने नमाज़ियों के बीच बैठे अपने बड़े बेटे इमाम हसन से पूछा बेटा हसन इस महीने के कितने दिन गुज़र गए हैं....इमाम हसन ने जवाब दिया बाबा 13 दिन गुज़र गए हैं...फिर पूछा कितने दिन बाक़ी हैं इमाम हसन ने जवाब दिया 17 दिन फिर इमाम अली ने अपनी दाढ़ी मुबारक पर हाथ फेरते हुए फ़रमाया बहुत जल्द मेरी दाढ़ी मेरे सर के ख़ून से रंगीन होगी....
इन लोगों ने रची इमाम अली के क़त्ल की साज़िश
रमज़ान के रोज़े तेज़ी से गुज़र रहे थे...इधर अली इबने अबी तालिब के क़त्ल की साज़िशें उससे भी ज़्यादा तेज़ी से हो रही थी...रमज़ान से पहले ही साज़िश करने वालों ने इमाम अली को क़त्ल करने के लिए अब्दुरहमान बिन मुल्जिम को ज़िम्मा सौंप दिया था...इब्ने मुल्जिम कूफ़े की तरफ़ निकल पड़ा....20 शाबान सन 40 हिजरी को वो कूफ़ा शहर में दाख़िल हुआ...कूफ़ा पहुंच कर इब्ने मुल्जिम ने अपने ख़वारिज साथियों से मुलाक़ात की....अचानक वो क़बीलए तीम-उल-अरब के लोगों से मिलने गया...वहां वो एक औरत से मिला जिसका नाम क़ुत्ताम बिन्ते शजना बिन अदी था...क़ुत्ताम भी इमाम अली से बदला लेना चाहती थी.... क़ुत्ताम के बाप और भाई जंगे नहरवान में इमाम अली के लशहर के हाथों हलाक हुए थे...क़ुत्ताम और इब्ने मुल्जिम दोनो का मक़सद एक था...लेकिन न तो क़ुत्ताम को इब्ने मुल्जिम के इरादों के बारे में पता था और न ही इब्ने मुल्जिम ये जानता था कि क़ुत्ताम इमाम अली से बदला लेना चाहती है....क़ुत्ताम और इब्ने मुल्जिम में मुलाक़ाते बढ़ने लगीं...इब्ने मुल्जिम को क़ुत्ताम से प्यार हो गया...क़ुत्ताम से इबने मुल्जिम ने शादी की पेशकश की....तो क़ुत्ताम ने कहा कि मैं शादी उसी से करूंगी जो अली को क़त्ल करे...ये सुन कर इब्ने मुल्जिम चौंक गया......उसने कहा कि क़ुत्ताम इत्तेफ़ाक़ से मैं भी कूफ़ा इसी मक़सद से आया हूं....दोनों की नज़दीकियों में क़ुरबत और बढ़ गई...दोनो की साज़िशें और तेज़ हो गईं.....
हमले में बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए हज़रत अली
19 रमज़ान की सुबह हुई......ये अली पर हमले की सुबह थी....इमाम अली रात में अपनी छोटी बेटी उम्मे कुलसूम के घर मेहमान थे...अली ने रात भर जाग कर गुज़ारी...बार बार कमरे से बाहर जाते और आसमान की तरफ़ देखते और फ़रमाते ख़ुदा की क़सम ये झूठ नहीं है....मुझे हरगिज़ झूठ नहीं बताया गया...यही वो रात है जिसमें मुझसे शहादत का वादा किया गया है....सुबह हुई तो इमाम अली नमाज़े फ़ज्र अदा करने मस्जिदे कूफ़ा पहुंचे...अज़ान दी....मस्जिद में सोए हुए लोगों को जगाया....इन्हीं लोगों में अब्दुर रहमान बिन मुल्जिम भी था जो तलवार को छुपाए पेट के बल लेटा हुआ था....नमाज़े जमात शुरू हुई...इमाम अली पहली रकत के दूसरे सजदे से सर उठा रहे थे कि इब्ने मुल्जिम ने ज़हर में बुझी हुई तलवार से हमला किया.... हमला इतना तेज़ था कि तलवार सर से पेशानी तक उतर आई.... इमाम अली के मुंह से एक आवाज़ आई फ़ुज़तो बे रब्बिल काबा, काबे के रब की क़सम मैं कामयाब हो गया...इमाम अली को ज़ख़्मी हालत में मस्जिद से घर लाया गया, इमाम के साथियों ने हमलावर इब्ने मुल्जिम को पकड़ लिया...अली पर हमले की ख़बर कूफ़ा शहर में फैल गई...लोग इब्ने मुल्जिम से इंतेक़ाम लेने पर आमादा थे.... लेकिन ज़ख़्मी इमाम अली ने मना कर दिया और क़ानून इस्लाम के मुताबिक़ उसे सज़ा का हुक्म दिया...
शहादत से पहले अपनी ख़िलाफ़त के बारें में लोगों से हज़रत अली ने पूछा
अली की शहादत का वक़्त क़रीब आया तो आपने कहा कि मैं कूफ़े वालों से बात करना चाहता हूं....इमाम की ख़्वाहिश के मुताबिक़ एलान हो गया कि इमाम अली अवाम से ख़िताब करेंगे...कूफ़े का हर शख़्स घर से निकल आया, औरते और बच्चे भी रोते हुए जमा हो गए....पूरा कूफ़ा इंसानों से छलक रहा था...कि बेटों के सहारे इमाम अली मेंबर पर गए और पूछा ऐ लोगो क्या मैं तुम्हारा बुरा इमाम आपके इस सवाल पर रोने लगे...फिर पूछा क्या मेरी अहदे हुकूमत में कोई दिन ऐसा आया जिस दिन खाने को रोटी न मिली हो...लोगों की तड़प और गयी मजमे एक आवाज़ में कहा नहीं मौला...फिर पूछा क्या कोई ऐसा है जिसके तन पर लिबास न हो.....क्या कोई ऐसा है जिसके पास रहने को घर न हो..इमाम अली के इन सवालों पर लोग और तेज़ रोने लगे...सबने रोते हुए कहा अली आपकी अहदे ख़िलाफ़त में हमारे पास सबकुछ है...अली ने ख़ुत्बा ख़त्म किया....ज़ख़्मी अली इब्ने अबी तालिब ज़ख़्मों की ताब नहीं ला सके और 21 रमज़ान सन 40 हिजरी को अली ने ज़ाहिरी दुनिया से पर्दा कर लिया.
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