ग़रीब नवाज़ के 808वें उर्स का आगाज़: रिवायती अंदाज़ में अदा की गई परचम कुशाई की रस्म
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ग़रीब नवाज़ के 808वें उर्स का आगाज़: रिवायती अंदाज़ में अदा की गई परचम कुशाई की रस्म

इस रस्म के दौरान सेंकड़ों की तादाद में ज़ायरीन पहुंचे जिन्होंने परचम का बोसा लिया, साथ ही मुल्क खुशहाली के लिए दुआ भी मांगी. रस्म के साथ ही लोगों को उर्स मेले की जानकारी दी गई.

फाइल फोटो...

अशोक भाटी/अजमेर: ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ग़रीब नवाज़ के 808 वें उर्स का आगाज़ परचम कुशाई की रस्म के साथ हो गया है, इस रस्म के दौरान सेंकड़ों की तादाद में ज़ायरीन पहुंचे जिन्होंने परचम का बोसा लिया, साथ ही मुल्क खुशहाली के लिए दुआ भी मांगी. रस्म के साथ ही लोगों को उर्स मेले की जानकारी दी गई. भीलवाड़ा शहर के लाल मोहम्मद गौरी के परिवार ने ख्वाजा साहब की दरगाह पर परचम कुशाई की रस्म को अदा किया गया और 21 तोपों की सलामी भी दी गई. जुलूस के दौरान शाज़ियाने भी बजाए गए. बता दें कि ग़रीब नवाज़ के उर्स का रस्मी आग़ाज़ रजब (अरबी महीने का नाम) का चाँद दिखाई देने के बाद से शुरू हो जायगा.

झंडे का जुलुस असर की नमाज़ के बाद ग़रीब नवाज़ गैस्ट हाउस से रवाना हुआ जिसमें शाही चौकी के क़व्वाल असरार हुसैन क़व्वालियों व बैंड बाजो के जुलुस के साथ लंगरखाना गली, निज़ाम गेट होते हुए जुलुस दरगाह के अंदर दाखिल किया इस रस्म के दौरान अकीदतमंदों में एक अजीब सी होड़ मच गई और अपनी मन्नत को लेकर हर कोई परचम को चूमने की खाव्हिश पूरी करता नज़र आया. इस मौके पर मुल्कभर में अमन अमान व भाईचारगी को क़ायम रखने के लिए दुआ मांगी गई. यह उर्स मुल्क की तरक्की व खुशहाली के साथ-साथ लोगों में मोहब्बत बांटने के लिए जाना जाएगा.

भीलवाड़ा से आये गौरी परिवार के अनुसार यह रिवायत काफी अरसे से चली आ रही है. 1928 से फख़रुद्दीन गौरी के पीरो मुर्शिद अब्दुल सत्तार बादशाह परचम कुशाई की रस्म अदा करते थे. इसके बाद 1944 से उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी, उनके इंतेक़ाल के बाद 1991 से बेटे मोईनुद्दीन गौरी यह रस्म निभाने लगे और साल 2007 से फख़रुद्दीन इस रस्म को अदा कर रहे हैं. 

बताया जाता है की सालों पहले परचम कुशाई की रस्म शुरू हुई तब बुलंद दरवाज़े पर चढ़ाया गया परचम आस-पास के गांवो तक नज़र आता था. उस वक्त मकान छोटे-छोटे और बुलंद दरवाजा काफी दूर से नज़र आता था. इस दरवाज़े पर परचम को देखकर ही लोग समझ जाते थे की पांच दिन बाद ग़रीब नवाज का उर्स शुरू होने वाला है यह पैग़ाम एक से दूसरे तक दूर-दूर तक पहुँच जाता था.

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