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अज़ीम गीतकार शकील बदायूंनी का यौमे विलादत आज, पढ़िए उनकी ज़िंदगी का मुख्तसर सफरनामा

गीतकारे आज़म शकील बदायूंनी का नाम ज़बान पर आते ही चेहरे पर एक खुशी सी तारी हो जाती है. आज ही के दिन वो इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए थे. उन्होंने उर्दू शायरी में अपना एक मुनफरिद मकाम बनाया. शकील बदायूंनी के फिल्मी गीत और गज़लें आज भी लोगों की ज़बान पर रहती हैं.

(फाइल फोटो)
(फाइल फोटो)

मोहम्मद सुहेल / आज़ीम गीतकार शकील बदायूंनी का यौमे विलादत आज, पढ़िए उनकी ज़िंदगी का मुख्तसर सफरनामा शकील बदायूंनी का नाम ज़बान पर आते ही चेहरे पर एक खुशी सी तारी हो जाती है. आज ही के दिन वो इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए थे. उन्होंने उर्दू शायरी में अपना एक मुनफरिद मकाम बनाया. शकील बदायूंनी के फिल्मी गीत और गज़लें आज भी लोगों की ज़बान पर रहती हैं. उन्होंने मुग़ले आज़म,गंगा जमना, मदर इंडिया, अमर, सन ऑफ इंडिया, दिल्लगी, दीदार, मेला, दर्द, दास्तान, आदमी जैसी कई बड़ी दीगर फिल्मों के नग़में लिखे हैं.

शकील बदायूंनी ने नौशाद अली, रवि, हेमंत कुमार जैसे अज़ीम मौसीकार के साथ काम किया. इनके गीतों को मौहम्मद रफी, तलत महमूद, लता मंगेशकर, मुकेश, शमशाद बेगम, महेंद्र कपूर, जैसे मशहूर गुलूकारों ने इनके गीत को आवाज़ देकर अपनी पहचान कायम की.

शकील बदायूंनी 1916 को उत्तर प्रदेश के ज़िला बदायूं मे पैदा हुए थे. उनका तअल्लुक एक मज़हबी और अदबी घराने से था. शकील साहब के वालिद जमाल अहमद सोख्ता कादरी बदायूंनी मुंबई की एक मस्जिद के खतीब और पेशे इमाम थे. इसलिए शकील की इब्तेदाई तालीम भी इस्लामी मकतब में हुई थी, उर्दू, फारसी और अरबी की तालीम के बाद वो मिस्टन इस्लामिया हाई स्कूल बदांयू से सनद हासिल करने के बाद आला तालीम के लिए उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से अपनी तालीम मुकम्मल की. तालीम मुकम्मल करने बाद इन्होंने दिल्ली में नौकरी की और यहां पर ये अक्सर मुशायरों में शिरकत किया करते थे. यहीं पर एक दिन इनको फिल्मी दुनिया की एक अज़ीम शख्सियत अब्दुल राशिद कारदार ने इनका कलाम सुना, वो इनके कलाम से इतने मुतास्सिर हुए कि उन्होंने शकील साहब को मुंबई आना का न्योता दिया, शकील साहब ने कारदार साहब के न्योते को कुबूल किया और मुंबई का रुख किया.

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मुंबई में अब्दुल राशिद कारदार ने उनकी मुलाकात उस वक्त के मशहूर मौसीकार नौशाद साहब से कराई, नौशाद साहब ने अपने अंदाज़ में एक धुन पर कुछ लिखने को कहा, शकील साहब ने एक मिनट में ही बेहद आसानी से ये शेर लिख दिया: "हम दर्द का अफसाना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मुहब्बत की इक आग लगा देंगे". शकील साहब के इस शेर से नौशाद साहब इतने मुतास्सिर हुए कि उन्होंने दर्द फिल्म के सभी नग़में उन्हीं से लिखने को कह दिया और शकील साहब के नग़मों की बदौलत ही दर्द फिल्म उस वक्त की सुपहिट फिल्म साबित हुई. अपनी इस कामयाबी के बाद उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. शकील साहब इस दुनिया ए फानी को बहुत कम उम्र (53 साल) में अलविदा कह गए लेकिन इस मुख्तसर वक्त में ही उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को इतना कुछ दे दिया कि शायद कोई और ना दे पाता. शकील साहब अपने इस तआवुन के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे. 

आइए उनके कुछ खास शेरों पर एक नज़र डालते हैं.

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया 
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया 
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है 
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया 

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कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुल 
मुझे आज़मा रहा है कोई रुख़ बदल बदल कर 

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कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है 
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है 

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अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे 
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे 

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मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन 
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया 

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काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ

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तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो 
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना 

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जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील' 
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया 

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मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतना 
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए 

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कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई 
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई 

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कोई दिलकश नज़ारा हो कोई दिलचस्प मंज़र हो
तबीअत ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती
क्या हसीं ख़्वाब मोहब्बत ने दिखाया था हमें
खुल गई आँख तो ताबीर पे रोना आया

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