History of Firecrackers: आज पूरा देश दिवाली की रोशनी से जगमगा रहा है. सभी अपने अपने घरों में दिवाली की तैयारियों में लगे हैं. वैसे तो घर के तमाम लोग घरों की साफ सफाई और खरीदारी में बीजी रहते हैं लेकिन जितने भी बच्चे होते हैं उन्हें बस इस बात का इंतेजार रहता है कि कब उन्हें पटाखें मिले, और वह कॉलोनी का गलियों में पटाखें फोड़ना शुरू करें, माना कि पटाखे फोड़ना बच्चों को काफी पसंद होता है लेकिन पर्यावरण को देखते हुए अगर इसमें थोड़ी से कमी कर दी जाए तो सभी के लिए बेहतर होगा लेकिन अब यह बात बच्चों को कौन समझाए. उन्हें तो दिवाली मतलब पटाखे ही समझ आते हैं. तो खैर बच्चों को पटाखा फोड़ने दें और हम चलते हैं यह जानने कि आखिर भारत में यह पटाखे कहां से आए और इसकी शुरूआत कैसे हुई. कुछ लोगों का मानना है कि पटाखों की शुरूआत महज एक गलती थी कहा जाता है कि एक रसोइये ने खाना बनाते वक्त पोटैशियम नाइट्रेट को आग में फेंक दिया था जिसकी वजह से उसमें रंगीन लपटें निकलीं. और फिर उसने एक और एक्सपरिमेंट किया उसने जब आग में कोयला और सल्फर का पाउडर डाला तो एक जोरदार धमाका हुआ जिसके बाद लोगों ने बारूद को पहचाना लेकिन कुछ का कहना है कि पटाखों की शुरूआत करने का श्रेय चीन को दिया जाता है ऐसा माना जाता है कि चीन ने छठी शताब्दी में पटाखों की शुरूआत की वहीं अपने देश भारत की करें. तो भारत में पटाखों की शुरूआत 15वीं सदी में हुई थी. जिसका सबुत उस वक्त के कई तस्वीरों में देखने को मिलता है. ऐसा कहा जाता है कि भारत में बारूद की शुरुआत मुगलों ने की. मुगल बादशाह बाबर अपने साथ बारूद लेकर आया था पानीपत का प्रथम युद्ध, उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जिसमें बारूद का इस्तेमाल किया गया था..इसके बाद ही भारत में धीरे धीरे पटाखों का चलन शुरु हुआ. पहले पटाखें सिर्फ राजा महाराजाओं की शादियों में फोड़े जाते थे. क्योंकि यह काफी मंहगे होते थे. लेकिन धीरे धीरे लोगों के बीच यह आम हो गया आपको बता दें कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा चेन्नई से 500 किमी दूर शिवाकाशी में सबसे ज्यादा पटाखों का उत्पादन होता है. पूरी दुनिया का लगभग 80% पटाखों का निर्माण शिवाकाशी में होता है.