Muharram 2023: मुहर्रम में मातम के वक्त क्यों पहनते हैं शिया मुसलमान काला कपड़ा?
रीतिका सिंह Tue, 25 Jul 2023-12:22 pm,
Muharram 2023: हरे रंग की अपनी हैसियत और निशानी है. सफ़ेद रंग अम्न की निशानी है. ज़ाफ़रानी रंग रूहानियत की निशानी है. लाल रंग ख़तरे की निशानी है. उसी तरह से स्याह या काला रंग ग़म और एहतेजाज की अलामत है. दुनियां में जहां भी ग़म और ग़ुस्से का इज़हार होता है तो वहां लोग काले रंग की पट्टी अपने बाजुओं या माथे पर बांधते हैं. काले झंडे उठाते हैं. अपने बाज़ारों और बस्तियों में काली झंडिया लगाते हैं. कर्बला के वाक़्ये के बाद इमाम हुसैन के चाहने वालों ने यज़ीद के ज़ुल्मों सितम के ख़िलाफ़ जब जुलूस निकाले तो काले झण्डे हाथों मे लिए काले कपड़े पहने नज़र आए. आज भी शिया अफ़राद मोहर्रम की चांद रात से लेकर रबील अव्वल की 8 तारीख़ तक स्याह लिबास पहन कर ही मजलिसों और जुलूसों में शिरकत करते हैं. काले रंग की इस्लाम में बहुत अहमियत है. काबे का ग़िलाफ़ भी काला है. ख़ुद रसूले मक़बूल की चादर का रंग भी काला था. इसीलिए नात लिखने वाले उन्हें काली कमली वाला कह कर ज़िक्र करते हैं. और रिवायतों में मिलता है कि बीबी फ़ातिमा भी स्याहपोश रहा करती थीं. आज आप हिजाबी ख़्वातीन को देखें तो ज़्यादातर काले नक़ाब ही पहनती हैं...