'वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो', आसी उल्दनी के शेर

Siraj Mahi
Nov 14, 2023


कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना... वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो


जहाँ अपना क़िस्सा सुनाना पड़ा... वहीं हम को रोना रुलाना पड़ा


हज़ारों तरह अपना दर्द हम उस को सुनाते हैं... मगर तस्वीर को हर हाल में तस्वीर पाते हैं


अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को... मैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं


सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन... होश उड़ जाते हैं अब भी तिरी आवाज़ के साथ


बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी'... बेचारे ने फिर तुम को कहीं देख लिया है


मुरत्तब कर गया इक इश्क़ का क़ानून दुनिया में... वो दीवाने हैं जो मजनूँ को दीवाना बताते हैं


ज़ोफ़ आहों पर भी ग़ालिब हो चला था ऐ अजल... तू न आती तो ये मेरा आख़िरी पैग़ाम था


इश्क़ पाबंद-ए-वफ़ा है न कि पाबंद-ए-रुसूम... सर झुकाने को नहीं कहते हैं सज्दा करना

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