'दोस्त अहबाब से लेने न सहारे जाना', अब्दुल अहद साज़ के शेर

Siraj Mahi
Nov 15, 2023


दोस्त अहबाब से लेने न सहारे जाना... दिल जो घबराए समुंदर के किनारे जाना


जिन को ख़ुद जा के छोड़ आए क़ब्रों में हम... उन से रस्ते में मुढभेड़ होती रही


बचपन में हम ही थे या था और कोई... वहशत सी होने लगती है यादों से


मैं बढ़ते बढ़ते किसी रोज़ तुझ को छू लेता... कि गिन के रख दिए तू ने मिरी मजाल के दिन


नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक... मुझ को अपना घर बहुत याद आ रहा है


बुरा हो आईने तिरा मैं कौन हूँ न खुल सका... मुझी को पेश कर दिया गया मिरी मिसाल में


शेर अच्छे भी कहो सच भी कहो कम भी कहो... दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुस्वा न करो


वो तो ऐसा भी है वैसा भी है कैसा है मगर?... क्या ग़ज़ब है कोई उस शोख़ के जैसा भी नहीं


आई हवा न रास जो सायों के शहर की... हम ज़ात की क़दीम गुफाओं में खो गए

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