Hindi Poetry in Urdu: इस ही बुनियाद पर क्यूं न मिल जाएं हम, आप तन्हा...

Siraj Mahi
Dec 16, 2024

मंज़रों के भी परे हैं मंज़र, आँख जो हो तो नज़र जाए जी

समुंदर पार आ बैठे मगर क्या, नए मुल्कों में बन जाते हैं घर क्या

तुम अपने अक्स में क्या देखते हो, तुम्हारा अक्स भी तुम सा नहीं है

फिर नई हिजरत कोई दरपेश है, ख़्वाब में घर देखना अच्छा नहीं

हर इक रस्ते पे चल कर सोचते हैं, ये रस्ता जा रहा है अपने घर क्या

जब थी मंज़िल नज़र में तो रस्ता था एक, गुम हुई है जो मंज़िल तो रस्ते बहुत

साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहे, दरिया में हम जो उतरे तो दरिया उतर गया

इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम, आप तन्हा बहुत हम अकेले बहुत

आप के जाते ही हम को लग गई आवारगी, आप के जाते ही हम से घर नहीं देखा गया

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