Hindi Poetry in Urdu: "कभी ख़ाक वालों की बातें भी सुन..."

Siraj Mahi
Oct 19, 2024

ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में, तिरी याद आँखें दुखाने लगी

कभी ख़ाक वालों की बातें भी सुन, कभी आसमानों से नीचे उतर

क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो, तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो

मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ, ये जब्र है कि मैं ख़ुद अपने इख़्तियार में हूँ

तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को, ख़ुद ही फ़्रेम तोड़ के पहलू में आ गया

अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार, इक शख़्स चीख़ता है समुंदर के आर-पार

यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर, आईने की ख़ंदक़ में जो परछाईं पड़ी थी

किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को, काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर, उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया

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