"चार झोंके जब चले ठंडे चमन याद आ गया", अमीर मीनाई के शेर

Siraj Mahi
May 23, 2024

बरहमन
बरहमन दैर से काबे से फिर आए हाजी... तेरे दर से न सरकना था न सरके आशिक़

वस्ल
वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल तो क्या... शर्म भी जाए तो मैं जानूँ कि तन्हाई हुई

वफ़ादारों
छेड़ देखो मिरी मय्यत पे जो आए तो कहा... तुम वफ़ादारों में हो या मैं वफ़ादारों में हूँ

महफ़िल
अपनी महफ़िल से अबस हम को उठाते हैं हुज़ूर... चुपके बैठे हैं अलग आप का क्या लेते हैं

जुम्बिश
लचक है शाख़ों में जुम्बिश हवा से फूलों में... बहार झूल रही है ख़ुशी के फूलों में

फ़साना
जी लगे आप का ऐसा कि कभी जी न भरे... दिल लगा कर जो सुनें आप फ़साना दिल का

कफ़न
जब कहीं दो गज़ ज़मीं देखी ख़ुदी समझा मैं गोर... जब नई दो चादरें देखीं कफ़न याद आ गया

फ़ुर्क़त
फ़ुर्क़त में मुँह लपेटे मैं इस तरह पड़ा हूं... जिस तरह कोई मुर्दा लिपटा हुआ कफ़न में

वतन
चार झोंके जब चले ठंडे चमन याद आ गया... सर्द आहें जब किसी ने लीं वतन याद आ गया

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