'बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं', असरार-उल-हक़ मजाज़ के शेर

Siraj Mahi
Nov 08, 2023


तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया... बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं


हिन्दू चला गया न मुसलमाँ चला गया... इंसाँ की जुस्तुजू में इक इंसाँ चला गया


क्यूँ जवानी की मुझे याद आई... मैं ने इक ख़्वाब सा देखा क्या था


आप की मख़्मूर आँखों की क़सम... मेरी मय-ख़्वारी अभी तक राज़ है


फिर मिरी आँख हो गई नमनाक... फिर किसी ने मिज़ाज पूछा है


आँख से आँख जब नहीं मिलती... दिल से दिल हम-कलाम होता है


बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना... तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है


दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को... और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ मैं


कब किया था इस दिल पर हुस्न ने करम इतना... मेहरबाँ और इस दर्जा कब था आसमाँ अपना

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