"हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम, मगर हम तो तमाशा हो गए हैं"

Siraj Mahi
Jun 19, 2024

क़रीब
मैं तेरे क़रीब आते आते... कुछ और भी दूर हो गया हूँ

याद
जी न सकूँ मैं जिस के बग़ैर... अक्सर याद न आया वो

फ़रेब
ऐ मुझ को फ़रेब देने वाले... मैं तुझ पे यक़ीन कर चुका हूँ

आना
इतने दिन के बाद तू आया है आज... सोचता हूँ किस तरह तुझ से मिलूँ

दोस्त
बहुत छोटे हैं मुझ से मेरे दुश्मन... जो मेरा दोस्त है मुझ से बड़ा है

मुक़द्दर
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा... होता रहता है यूँ ही क़र्ज़ बराबर मेरा

दाद-ए-हुनर
वो दौर क़रीब आ रहा है... जब दाद-ए-हुनर न मिल सकेगी

साया
ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी... क्यूँ ढूँड रहे हो किसी दीवार का साया

दरवाज़ा
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए... और उस के लिए जो कभी आया न गया हो

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