अंजान
ऐसे अंजान बने बैठे हो... तुम को कुछ भी न पता हो जैसे

Siraj Mahi
Jun 16, 2024

ज़मीं
जो दे रहे हो ज़मीं को वही ज़मीं देगी... बबूल बोए तो कैसे गुलाब निकलेगा

मोहब्बत
हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने... जी सारे ज़माने के गुनहगार हमीं थे

गेसू
ये उड़ी उड़ी सी रंगत ये खुले खुले से गेसू... तिरी सुब्ह कह रही है तिरी रात का फ़साना

ग़म
रहता नहीं इंसान तो मिट जाता है ग़म भी... सो जाएँगे इक रोज़ ज़मीं ओढ़ के हम भी

ज़बाँ
किस किस की ज़बाँ रोकने जाऊँ तिरी ख़ातिर... किस किस की तबाही में तिरा हाथ नहीं है

हैराँ
मैं हैराँ हूँ कि क्यूँ उस से हुई थी दोस्ती अपनी... मुझे कैसे गवारा हो गई थी दुश्मनी अपनी

वफ़ा
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए... वो हँस पड़े मुझे मुश्किल में डालने के लिए

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