Faiz Ahmad Faiz Poetry: "उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर..."

Siraj Mahi
Nov 16, 2024

आप की याद आती रही रात भर, चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान, भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही, नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है, लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं, किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी, सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी

उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर, कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं

दिल से तो हर मोआमला कर के चले थे साफ़ हम, कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई

VIEW ALL

Read Next Story