'हर सदा पर लगे हैं कान यहाँ', फैज अहमद फैज के शेर

Siraj Mahi
Oct 14, 2023

सारी दुनिया से दूर हो जाए... जो ज़रा तेरे पास हो बैठे

हर सदा पर लगे हैं कान यहाँ... दिल सँभाले रहो ज़बाँ की तरह

अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें... रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम

रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई... जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए

न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है... अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है

न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ... इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी... सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी

ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में... हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं

फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं... फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम

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