"तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं"; फैज अहमद फैज के शेर

सारी दुनिया से दूर हो जाए... जो ज़रा तेरे पास हो बैठे

और क्या देखने को बाक़ी है... आप से दिल लगा के देख लिया

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए... इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए

रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई... जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए

आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान... भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है... लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं... किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी... सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी

ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में... हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं

VIEW ALL

Read Next Story