बकरीद पर कद-काठी नहीं किग्रा के हिसाब बिक रहे बकरे; जानें किस तरह खरीदने में है फायदा?
Siraj Mahi
Jun 16, 2024
बकरों की खरीद दिल्ली में ईद-उल-अज़हा (बकरीद) के मौके पर लगने वाली पशु मंडियों में अब किलोग्राम के हिसाब से बकरों की खरीद-फरोख्त का चलन बढ़ रहा है.
कद-काठी का हिसाब कुछ साल पहले तक बकरों की बिक्री सिर्फ कद-काठी के हिसाब से होती थी, लेकिन इस बार देखने में आ रहा है कि बकरे किलोग्राम के हिसाब से भी बेचे जा रहे हैं.
पशुओं की कुर्बानी ईद-उल-अज़हा इस बार 17 जून को मनाई जाएगी. इस त्योहार को ईद-उल-ज़ुहा और बकरीद के नाम से भी जाना जाता है. बकरीद पर सक्षम मुसलमान अल्लाह की राह में बकरे या अन्य पशुओं की कुर्बानी देते हैं.
बकरा मंडी इसके लिए हर साल उत्तर प्रदेश के बरेली, अमरोहा, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, बदायूं के अलावा हरियाणा और राजस्थान से भी बकरा व्यापारी दिल्ली के अलग-अलग इलाके में लगने वाली बकरा मंडियों का रुख करते हैं.
मीना बाजार पुरानी दिल्ली के मीना बाजार, सीलमपुर, जाफराबाद, मुस्तफाबाद, शास्त्री पार्क, जहांगीरपुरी और ओखला आदि इलाकों में बकरों की मंडियां लगती हैं. लेकिन इस बार यहां किलो के हिसाब से बकरे बिक रहे हैं.
500 रुपये प्रति किग्रा मीना बाजार में बकरे बेच रहे फैज़ान आलम का कहना है कि बकरे 500 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचे जा रहे हैं. तौल के हिसाब से यह जानवर खरीदना कद-काठी देखकर बकरा खरीदने से सस्ता पड़ता है.
अलग्-अलग नस्ल आलम ने बताया कि ‘मेवाती’ और ‘तोतापरी’ नस्ल का 70 किलोग्राम का बकरा 35 हजार रुपये का पड़ जाएगा, जबकि बिना तौल से खरीदेने पर 50-55 हजार रुपये से कम का नहीं होगा.
20 हजार रु0 फैजान के मुताबिक किलोग्राम के हिसाब से ‘बरबरे’, ‘अजमेरी’ और ‘देसी’ नस्ल के सामान्य बकरों की कीमत 450 रुपये प्रति किलोग्राम है और यह 16 से 20 हजार रुपये में मिल जाते हैं.
लॉकडाउन का चलन एक दूसरे बकरा व्यापारी जावेद इकबाल ने कहा कि तौल के हिसाब से बकरे बेचने का चलन लॉकडाउन के वक्त से शुरू हुआ जब 280 से 350 किलोग्राम की दर से बकरे बेचे जा रहे थे.
क्या है मान्यता? इस्लामी मान्यता के मुताबिक, पैगंबर इब्राहिम अपने पुत्र इस्माइल को इसी दिन अल्लाह के हुक्म पर अल्लाह की राह में कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उनके बेटे को जीवनदान दे दिया और वहां एक पशु की कुर्बानी दी गई थी.
बकरीद इसी की याद में बकरीद त्योहार मनाया जाता है. तीन दिन चलने वाले त्योहार में मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी हैसियत के हिसाब से उन पशुओं की कुर्बानी देते हैं, जिन्हें भारतीय कानूनों के तहत प्रतिबंधित नहीं किया गया है.