अगर अदब के हैं शौकीन, तो जरूर पढ़ें गुलजार के ये 10 शेर

Siraj Mahi
Aug 12, 2024

वो उम्र कम कर रहा था मेरी, मैं साल अपने बढ़ा रहा था

राख को भी कुरेद कर देखो, अभी जलता हो कोई पल शायद

देर से गूँजते हैं सन्नाटे, जैसे हम को पुकारता है कोई

ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह, हो जाता है डाँवा-डोल कभी

जब दोस्ती होती है तो दोस्ती होती है, और दोस्ती में कोई एहसान नहीं होता

काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं, काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता

चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई, कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआँ

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं, मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ

चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं, दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें

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