Urdu Poetry in Hindi: मिरी मजबूरियां क्या पूछते हो, कि जीने के लिए मजबूर हूं मैं...

Siraj Mahi
Dec 21, 2024

कोई चारह नहीं दुआ के सिवा, कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा

मिरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो, कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं

भुलाई नहीं जा सकेंगी ये बातें, तुम्हें याद आएँगे हम याद रखना

ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है, बात होती है मगर बात नहीं होती है

रंग बदला यार ने वो प्यार की बातें गईं, वो मुलाक़ातें गईं वो चाँदनी रातें गईं

मुझ से क्या हो सका वफ़ा के सिवा, मुझ को मिलता भी क्या सज़ा के सिवा

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए, आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए

दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब, मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं

इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ, कहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए

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