'जान मुश्किल में है पता तो चले', हैरत इलाहाबादी के शेर

Siraj Mahi
Oct 18, 2023

ग़ैरों को क्या कहूँ उन्हें इल्ज़ाम कैसे दूँ... ख़ुद हम को अपने लोग बुरा बोलने लगे

घोल कर ज़हर वो देते हैं अगर पानी में... और बढ़ता है मोहब्बत का असर पानी में

न आँखों में मुरव्वत है न जा-ए-रहम है दिल में... जहाँ में बेवफ़ा माशूक़ तुम सा कम निकलता है

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं... सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं

बोसा लिया जो चश्म का बीमार हो गए... ज़ुल्फ़ें छूईं बला में गिरफ़्तार हो गए

जान मुश्किल में है पता तो चले... क्या तिरे दिल में है पता तो चले

किसी महाज़ पे वो बोलने नहीं देता... ज़रूरतन भी ज़बाँ खोलने नहीं देता

बादलों के टुकड़ों में आसमाँ का नीला-पन... कैसे भूले सावन की रुत का वो रंगीला-पन

वो बन-सँवर के सर-ए-शाम जब निकलते हैं... नज़र नज़र में हज़ारों चराग़ जलते हैं

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