"जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है, संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है"

Siraj Mahi
Jun 22, 2024

पत्थर
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा... वो कौन हैं फूलों के जिन्हें हार मिले हैं

ख़ुदा
पत्थरों आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो... मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है

रुख़्सत
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए... इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी

इश्क़
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी... नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है

चराग़
घर में जो इक चराग़ था तुम ने उसे बुझा दिया... कोई कभी चराग़ हम घर में न फिर जला सके

आसान
आसान किस क़दर है समझ लो मिरा पता... बस्ती के बाद पहला जो वीराना आएगा

हमदम
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी... दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए

उजाले
तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत... हमारे शहर का मंज़र भी गाँव जैसा है

तमाशा
ये तमाशा भी अजब है उन के उठ जाने के बाद... मैं ने दिन में इस से पहले तीरगी देखी न थी

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