'भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा.. मैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा"

Zee Salaam Web Desk
Nov 17, 2023


'मिट्टी पे नुमूदार हैं पानी के ज़ख़ीरे.. इन में कोई औरत से ज़ियादा नहीं गहरा"


"सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँ.. बच निकलने के ब'अद क्या होगा"


"मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते पर.. इक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा"


"बहुत मुसिर थे ख़ुदायान-ए-साबित-ओ-सय्यार.. सो मैं ने आइना ओ आसमाँ पसंद किए"


"मैं आग देखता था आग से जुदा कर के.. बला का रंग था रंगीनी-ए-क़बा से उधर"


"मैं किताब-ए-ख़ाक खोलूँ तो खुले... क्या नहीं मौजूद क्या मौजूद है"


"वो इक सूरज सुब्ह तलक मिरे पहलू में.. अपनी सब नाराज़गियों के साथ रहा"


"सियाही फेरती जाती हैं रातें बहर ओ बर पे.. इन्ही तारीकियों से मुझ को भी हिस्सा मिलेगा"


"साया-ए-अब्र से पूछो 'सरवत'.. अपने हमराह अगर ले जाए"

VIEW ALL

Read Next Story