"भूक से या वबा से मरना है, फ़ैसला आदमी को करना है"

Siraj Mahi
Jun 18, 2024

अकेली
कच्ची उम्रों में भी अकेली रही... मैं सदा अपनी ही सहेली रही

मिलना
शाम को तेरा हँस कर मिलना... दिन भर की उजरत होती है

अश्कों
वो जिस ने अश्कों से हार नहीं मानी... किस ख़ामोशी से दरिया में डूब गई

सन्नाटा
अकेले घर में भरी दोपहर का सन्नाटा... वही सुकून वही उम्र भर का सन्नाटा

मंज़ूर
आओ ज़रा सी देर को हम हँस-बोल ही लें... तुम को नहीं मंज़ूर है अच्छा रहने दो

मचल
ख़्वाहिशें दिल में मचल कर यूँही सो जाती हैं... जैसे अँगनाई में रोता हुआ बच्चा कोई

ख़्वाहिशें
ख़्वाहिशें दिल में मचल कर यूँही सो जाती हैं... जैसे अँगनाई में रोता हुआ बच्चा कोई

दुआ
तेरा नाम लिखती हैं उँगलियाँ ख़लाओं में... ये भी इक दुआ होगी वस्ल की दुआओं में

पत्थर
अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है... पत्थर बीच आईना रखना कितना मुश्किल है

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