'आँखें साक़ी की जब से देखी हैं'; जलील मनिकपुरी के शेर

Siraj Mahi
Mar 25, 2024


आँखें साक़ी की जब से देखी हैं... हम से दो घूँट पी नहीं जाती


ज़िंदगी क्या जो बसर हो चैन से... दिल में थोड़ी सी तमन्ना चाहिए


हुस्न ये है कि दिलरुबा हो तुम... ऐब ये है कि बेवफ़ा हो तुम


उन की सूरत देख ली ख़ुश हो गए... उन की सीरत से हमें क्या काम है


देख लेते जो मिरे दिल की परेशानी को... आप बैठे हुए ज़ुल्फ़ें न सँवारा करते


सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है... चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी


होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू... जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर


मैं डर रहा हूँ तुम्हारी नशीली आँखों से... कि लूट लें न किसी रोज़ कुछ पिला के मुझे


रात को सोना न सोना सब बराबर हो गया... तुम न आए ख़्वाब में आँखों में ख़्वाब आया तो क्या

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