Javed Akhtar Hindi Poetry: "गैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की..."

Siraj Mahi
Nov 18, 2024

यही हालात इब्तिदा से रहे, लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे

हम तो बचपन में भी अकेले थे, सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे

कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है, मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी

ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की, जब होता है कोई हमदम होता है

तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे, अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं, होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं

इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान, अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान

तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद, निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो

डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से, लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

VIEW ALL

Read Next Story