"हाए वो ज़िंदगी-फ़रेब आँखें, तू ने क्या सोचा मैं ने क्या समझा"

Siraj Mahi
Jun 23, 2024

हुक्म
सलाम उन पे तह-ए-तेग़ भी जिन्हों ने कहा... जो तेरा हुक्म जो तेरी रज़ा जो तू चाहे

दिल
बड़े सलीक़े से दुनिया ने मेरे दिल को दिए... वो घाव जिन में था सच्चाइयों का चरका भी

दुश्मनी
क्या रूप दोस्ती का क्या रंग दुश्मनी का... कोई नहीं जहाँ में कोई नहीं किसी का

ज़हर
ज़िंदगी की राहतें मिलती नहीं मिलती नहीं... ज़िंदगी का ज़हर पी कर जुस्तुजू में घुमिए

पहलू
तिरे ख़याल के पहलू से उठ के जब देखा... महक रहा था ज़माने में चार-सू तिरा ग़म

पलक
निगह उठी तो ज़माने के सामने तिरा रूप... पलक झुकी तो मिरे दिल के रू-ब-रू तिरा ग़म

पेड़
इस जलती धूप में ये घने साया-दार पेड़... मैं अपनी ज़िंदगी उन्हें दे दूँ जो बन पड़े

तिलिस्म
ये क्या तिलिस्म है ये किस की यासमीं बाँहें... छिड़क गई हैं जहाँ-दर-जहाँ गुलाब के फूल

गुज़रूँगा
मैं रोज़ इधर से गुज़रता हूँ कौन देखता है... मैं जब इधर से न गुज़रूँगा कौन देखेगा

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