Urdu Poetry in Hindi: "...दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत"

Siraj Mahi
Oct 20, 2024

रोते फिरते हैं सारी सारी रात, अब यही रोज़गार है अपना

शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँ, दिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस का

क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता, अब तो चुप भी रहा नहीं जाता

ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत, दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत

कोई तुम सा भी काश तुम को मिले, मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए, पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़, जान का रोग है बला है इश्क़

फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे, पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत

अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे, पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे

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