फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं, फिर वही ज़िंदगी हमारी है

Siraj Mahi
Jul 13, 2024

कब वो सुनता है कहानी मेरी, और फिर वो भी ज़बानी मेरी

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी, कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग, हम को जीने की भी उम्मीद नहीं

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं, भूले से उस ने सैकड़ों वादे वफ़ा किए

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है, कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं

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