Muneer Niyazi Poetry: 'अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ'

Siraj Mahi
Nov 04, 2023


एक वारिस हमेशा होता है... तख़्त ख़ाली रहा नहीं करता


किसी अकेली शाम की चुप में... गीत पुराने गा के देखो


ख़्वाब होते हैं देखने के लिए... उन में जा कर मगर रहा न करो


अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ... शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या


वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन... वो दिन था मेरी उम्र का सब से ख़राब दिन


तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो... मैं डूब भी जाता तो कहीं और उभरता


कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए... तू ने वो वक़्त हम को ज़माने नहीं दिया


हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने... इक ख़्वाब हैं जहाँ में बिखर जाएँ हम तो क्या


रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं... मैं उस घड़ी वतन से कई मील दूर था

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