कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है, सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है

Siraj Mahi
Aug 07, 2024

गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया, होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया

गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया, होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया

तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था, तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए

स के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा, वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती, ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक, जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है, वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें, इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था, सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

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