अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए, अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए

Zee Salaam Web Desk
Mar 25, 2025


आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा, जाने वाले तू हमें याद बहुत आएगा


ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ, काश तुझ को भी इक झलक देखूँ


हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम, जो बुझ गए तो हवा से शिकायतें कैसी


दुआ करो कि मैं उस के लिए दुआ हो जाऊँ, वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है


अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर, इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते


काश देखो कभी टूटे हुए आईनों को, दिल शिकस्ता हो तो फिर अपना पराया क्या है


एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे, किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते

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