धूप ने गुज़ारिश की... एक बूँद बारिश की

Siraj Mahi
Jun 30, 2024

याद आई वो पहली बारिश... जब तुझे एक नज़र देखा था

बरस रही थी बारिश बाहर... और वो भीग रहा था मुझ में

ओस से प्यास कहाँ बुझती है... मूसला-धार बरस मेरी जान

हम से पूछो मिज़ाज बारिश का... हम जो कच्चे मकान वाले हैं

घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ... छतों पर खिले फूल बरसात के

गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें... कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है

तमाम रात नहाया था शहर बारिश में... वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे

कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए... वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था

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