"आदमी की तलाश में है ख़ुदा, आदमी को ख़ुदा नहीं मिलता"

Siraj Mahi
Jun 24, 2024

रोज़
दिल कई रोज़ से धड़कता है... है किसी हादसे की तय्यारी

ख़राब
पहले भी ख़राब थी ये दुनिया... अब और ख़राब हो गई है

शक्ल
अब दिल की ये शक्ल हो गई है... जैसे कोई चीज़ खो गई है

तलाश
अपने को तलाश कर रहा हूँ... अपनी ही तलब से डर रहा हूँ

रफ़्तार
सिर्फ़ तारीख़ की रफ़्तार बदल जाएगी... नई तारीख़ के वारिस यही इंसाँ होंगे

ख़ामोश
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम... गहरे समुंदरों में सफ़र कर रहे हैं हम

रूह
किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्म... कौन उतरा है तिरे क़ल्ब की गहराई में

ज़िंदगी
हम अपनी ज़िंदगी तो बसर कर चुके 'रईस'... ये किस की ज़ीस्त है जो बसर कर रहे हैं हम

आसमाँ
दिल से मत सरसरी गुज़र कि 'रईस'... ये ज़मीं आसमाँ से आती है

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