"कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए, वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए"

Siraj Mahi
Mar 19, 2024


हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया... तुम ने क्या सोच कर मोहब्बत की


पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे... जो लोग डूब गए कश्तियाँ बनाते हुए


तमाम उम्र सितारे तलाश करता फिरा... पलट के देखा तो महताब मेरे सामने था


आईना ख़ुद भी सँवरता था हमारी ख़ातिर... हम तिरे वास्ते तय्यार हुआ करते थे


मुझे सँभालने में इतनी एहतियात न कर... बिखर न जाऊँ कहीं मैं तिरी हिफ़ाज़त में


देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ... कोई रिश्ता ही नहीं ख़्वाब का ताबीर के साथ


क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं... कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं


दुनिया अच्छी भी नहीं लगती हम ऐसों को 'सलीम'.. और दुनिया से किनारा भी नहीं हो सकता


कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में... कि इस के बाद जो किरदार था फ़साना हुआ

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