"कौन सी बात है जो उस में नहीं, उस को देखे मिरी नज़र से कोई" शहरयार के शेर

Siraj Mahi
Mar 27, 2024


ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता... मैं तुझ से जुदा हो के भी तन्हा नहीं होता


सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है... इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है


हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है... अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें


शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को... मैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को


जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा... तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा


जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने... इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने


सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का... यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का


जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है... ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है


शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है... सोचता रोज़ हूँ मैं घर से नहीं निकलूँगा

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