'उसी की बात चल जाती है जिस का नाम चलता है'; शकील बदायूनी के शेर

Siraj Mahi
Apr 02, 2024


लम्हा लम्हा बार है तेरे बग़ैर... ज़िंदगी दुश्वार है तेरे बग़ैर


हाए वो ज़िंदगी की इक साअत... जो तिरी बारगाह में गुज़री


बदलती जा रही है दिल की दुनिया... नए दस्तूर होते जा रहे हैं


खुल गया उन की आरज़ू में ये राज़... ज़ीस्त अपनी नहीं पराई है


दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ... छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूँ


ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूँ... मुझ से अब ख़ून-ए-तमन्ना नहीं देखा जाता


ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया... ख़ाली ही सही मेरी तरफ़ जाम तो आया


मैं बताऊँ फ़र्क़ नासेह जो है मुझ में और तुझ में... मिरी ज़िंदगी तलातुम तिरी ज़िंदगी किनारा


छुपे हैं लाख हक़ के मरहले गुम-नाम होंटों पर... उसी की बात चल जाती है जिस का नाम चलता है

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